Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे प्रतरांगुलदिदं गुणिसि बळिक्कं :
विरलिदरासीवो पुण जेत्तियमेताणि होणरूवाणि ।
तेसि अण्णोण्णहदे हारो उप्पण्णरासिस्स ॥
एंदु लक्षयोजनच्छेदमात्रविकद्वयंगळ संवर्गजनितलक्षयोजनवर्गदिदमुं येकयोजनांगुलच्छेद. ५ मात्रद्विकद्वयसंवर्गजनितएकयोजनांगुलंगळ वर्गदिदमु मेरुमध्यच्छेदमोदर द्विकवर्गदिदमु जल.
चरसहितसमुद्रत्रयशलाकात्रयद गुणोत्तरगुणितघनप्रमितदिदमु १६ । १६ । १६ गुणिसल्पट्ट प्रतरांगुलदिदं भागिसि भाज्यभागहारंगळं निरीक्षिसि :
१०
जम्बूद्वीपक्षेत्रफलयोजनाङ्गलवर्गप्रतराङ्गलैः संगुण्य पश्चात्
विरलिदरासीदो पुण जेत्तियमेत्ताणि हीणरूवाणि ।
तेसि अण्णोण्णहदे हारो उप्पण्णरासिस्स । इति लक्षयोजनछेदमात्रद्विकद्वयर्जातलक्षयोजनवर्गेण एकयोजनाङ्गुलछेदमात्रद्विकद्वयनितैकयोजनागुलवर्गेण मेरुमध्यच्छेदस्य द्विकवर्गेण जलचरसमुद्रशलाकात्रयस्य गुणोत्तरघनेन च १६ । १६ । १६ हतप्रतराङ्गुलेन
गुणाकार वर्गरूप होता है, अतः सात लाख अड़सठ हजारका दो बार गुणा करना होता है।
सूच्यंगुलके वर्गको प्रतरांगुल कहते हैं, अतः इतने प्रतरांगुलोंसे उक्त राशिको गुणा करना। १५ पश्चात् विरलिदरासीदो' इत्यादि करणसूत्रके अनुसार द्वीप-समुद्रोंके प्रमाणमें-से राजूके
अर्धच्छेदोंमें-से जितने अर्धच्छेद घटाये हैं, उनके आधे प्रमाणमात्र गुणाकार सोलहको परस्परमें गुणा करनेसे जो प्रमाण हो,उसे उक्त राशिका भागहार जानना । सो यहाँ जिसका आधा ग्रहण किया, उस सम्पूर्ण राशि प्रमाण सोलहके वर्गमूल चारको परस्परमें गुणा करनेसे
भी वही राशि आती है। सो अपने अर्धच्छेद प्रमाण दो-दोके अंकोंको परस्परमें गुणा करनेसे २० विवक्षित राशि होती है। यहाँ चार कहे हैं। अतः उतने ही मात्र दो बार दो-दोके अंकोंको
परस्परमें गुणा करनेसे विवक्षित राशिका वर्ग आता है। तदनुसार यहाँ लाख योजनके अर्धच्छेद प्रमाण दो बार दो-दोके अंकोंको रखकर परस्परमें गुणा करनेसे एक लाखका वर्ग आता है। एक योजनके अंगुलके अर्धच्छेद मात्र दो बार दो-दोको रखकर परस्परमें
गुणा करनेसे एक योजनके अंगुल सात लाख अड़सठ हजारका वर्ग आता है। मेरुके ऊपर . २५ आनेवाले एक अर्धच्छेद मात्र दो दुओंको परस्परमें गुणा करनेसे चार हुआ। सूच्यंगुलके
अर्धच्छेदमात्र दो-दोको रखकर परस्परमें गुणा करनेसे प्रतरांगुल हुआ। ये सब भागहार होते हैं । तथा जलचरवाले तीन समुद्र गच्छमें-से कम किये हैं अतः गुणोत्तर सोलहका तीन बार भाग होता है । इस प्रकार जगत्प्रतरमें प्रतरांगुल, दो, सोलह, चौबीस और सात सौ नब्बे
करोड़ छप्पन लाख, चौरानबे हजार, एक सौ पचास तथा सात लाख अड़सठ हजार, ३० सात लाख अड़सठ हजार तो गुणाकार हुआ । तथा प्रतरांगुल, सात, सात, पन्द्रह, एक लाख,
एक लाख, तथा सात लाख अड़सठ हजार, सात लाख अड़सठ हजार और चार और सोलह-सोलह-सोलह भागहार हुआ। इनमें से प्रतरांगुल, दो बार सोलह, दो बार सात लाख अड़सठ हजार ये गुणाकार और भागहारमें समान हैं, अतः इनका अपवर्तन हो जाता है। गुणाकार में दो और चौबीसको परस्परमें गुणा करनेसे अड़तालीस होते हैं, तथा भाग
३५ १. म छेदंगल।
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