Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे में बी गुणसंकलनसूत्रेष्टदिदं धनमं तंदु चतुविशतिखंडंगळिदं जंबूद्वीपक्षेत्रफलदिदम गुणियिसियपत्तिसि पूर्व निक्षिप्तसंख्यातसूच्यंगुलगुणितजगच्छेणिमात्रऋणसंकलितधनमं किंचिदूनं माडुत्तिरलु दगरयभाजित १२३९ जगत्प्रतरमात्रं ऋणक्षेत्रमक्कु । १ मिदंतादुत
१२६९ दोडे पेळल्पडुगुं।
इल्लि गच्छप्रमाणं द्वीपसागरंगळ 'संख्यार्धमेयप्पुरिदं गुणोत्तरद १६ मूलमे ग्राह्यमक्कु ४ । मदुकारणदिदं । पदमेत्ते गुणयारे अण्णोणं गुणियं एंदु गच्छमात्रद्विकगळं वरिंगतसंवर्ग माडिदोडे संख्यार्धमिति गुणोत्तरस्य १६ मूलं ४ गृहीत्वा गच्छतात्रद्विकद्वयेषु परस्परं गुणितेषु रज्जुवर्गः स्यात् । = =
५
७।७
सो लवण समुद्र में एक खण्ड हुआ। दूसरे स्थानके दो को सोलहसे गुणा करने पर बत्तीस
घन हुआ। और एकको चारसे गुणा करने पर चार ऋण हुआ। बत्तीसमें से चार घटाने पर १० अट्ठाईस रहा। सो दूसरे कालोदक समुद्रमें लवण समुद्र समान अट्ठाईस खण्ड हैं। तीसरे
स्थानके बत्तीसको सोलहसे गुणा करनेपर पाँचसौ बारह धन हुआ। और चारको चारसे गुणा करनेपर सोलह ऋण हुआ । पाँच सौ बारह में से सोलह घटाने पर चार सौ छियानबे रहे । सो इतने ही पुष्कर समुद्र में लवण समुद्र समान खण्ड हैं । अब जलचर रहित समुद्रोंका
क्षेत्रफल कहते हैं१५ जो द्वीप समुद्रोंका प्रमाण है , उसमें-से यहाँ समुद्रोंका ही ग्रहण होनेसे आधा करें।
उसमें-से जलचर सहित तीन समुद्र घटानेपर जलचर रहित समुद्रोंका प्रमाण होता है । वही यहाँ गच्छ जानना। सो दो आदि सोलह-सोलह गुणा धन कहा था। सो जलचररहित समुद्रोंके धनमें कितना क्षेत्रफल हुआ,उसे कहते हैं
___'पदमेत्ते गुणयारे' सूत्रके अनुसार गच्छ प्रमाण गुणकारको परस्परमें गुणा करके २० उसमें से एक घटाओ। तथा एक हीन गुणकारके प्रमाणसे भाग दो। तथा मुख अर्थात्
आदिस्थानसे गुणा करो। तब गुणकाररूप राशिमें सबका जोड़ होता है। यहाँ गच्छका प्रमाण तीन कम द्वीपसागरके प्रमाणसे आधा है। सो सब द्वीप-समुद्रोंका प्रमाण कितना है यह कहते हैं
एक राजूके जितने अर्द्धच्छेद हैं, उनमें एक लाख योजनके अर्द्धच्छेद, एक योजनके २५ साठ लाख अड़सठ हजार अंगुलोंके अर्द्धच्छेद और सूच्यंगुलके अर्धच्छेद तथा मेरुके ऊपर
प्राप्त हुआ एक अर्धच्छेद, इतने अर्धच्छेद घटानेपर जितना शेष रहे,उतने सब द्वीप समुद्र हैं।
और गुणोत्तरका प्रमाण सोलह है। सो गच्छ प्रमाण गुणोत्तरको परस्परमें गुणा करो । सो एक राजूकी अर्धच्छेद राशिसे आधे प्रमाण मात्र स्थानोंमें सोलह-सोलह रखकर परस्पर में
गुणा करनेसे राजूका वर्ग होता है । सो कैसे है,यह कहते हैं३० १. म संख्यातमेयप्पुदं ।
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