Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७६७ षोडशवर्गखंड गुणोत्तरमक्कुं। मत्ते सव्वंद्वीपसागरंगळनसुित्तं विरलु सर्वसमुद्रप्रमाणमक्कुमल्लि लवणोदकाळोदस्वयंभूरमणसमुद्रशलाकात्रयम कळेदोडे प्रकृतगच्छमक्कुमीयाधुत्तरगच्छंगळिदः
पदमेत्ते गुणयारे अण्णोष्णं गणिय रूव परिहीणे। रूऊणगुणेणहिये मुहेण गुणियंमि गुणगणियं ॥
१६ ।
१६
वा
पु
धन
ऋण
अत्र प्रकृतक्षेत्रफलोत्पत्तिनिमित्तं पुष्करसमुद्रस्य द्विगुणषोडशवर्गखण्डानि आदिः षोडशगुणोत्तरसर्वद्वीप- ५ समुद्रसंख्याधं समुद्रत्रयशलाकोनं गच्छः धनमानीयते । 'पदमेत्ते गुणयारे अण्णोणं गुणियं,' अत्र गच्छो द्वीपसागरइस प्रकार स्वयंभूरमण पर्यन्त जानना चाहिए। सो सर्वत्र एकको आदि लेकर चतुर्गणा उत्तरोत्तर ऋण और दो को आदि लेकर सोलहगुणा उत्तरोत्तर घन करनेसे लवण समुद्र समान खण्ड आते हैं।
लवण समुद्र समान खण्डोंका प्रमाण लानेके लिए रचनासमुद्र धनराशि
ऋणराशि | क्षीरवर | २ | १६ | १६ | १६ | १६ | १ ४ ४ ४ ४ । वारुणीवर २ | १६ | १६ | १६ | १ | ४ ४ ४ | पुष्कर | २ | १६ | १६ कालोद २ | १६ | लवणोद | २ | १
यहाँ दो आदि सोलह सोलह गुणा तो धन जानना और एक आदि चौगुना-चौगुना ऋण जानना । धनमें से ऋणको घटाने पर जो प्रमाण रहे,उतने ही लवण समुद्र समान खण्ड जानना । जैसे प्रथम स्थानमें धन दो और ऋण एक । सो दो में से एक घटाने पर एक रहा। १. ब. 'वर्गः आदिः ।
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