Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे गळनिहुँबंदु पंचेंद्रियजीवनादनल्लि भवप्रथमसमयप्रभृतिकृष्णनीलकपोतलेश्यंगळोळ प्रत्येकमंतमुहूर्तातम्र्मुहूत्तंगळनिर्दु बंदु तेजोलेश्यय पोद्दिदनितु षडंतर्मुहूत्तलिदमधिकमप्प संख्यातसहस्रवर्षगळिनभ्यधिकमप्पावल्यसंख्यातेकभागमात्रपुद्गलपरावत्तंगळु तेजोलेश्ययोत्कृष्टांतर
मक्कं । पद्मलेश्ययोळंतरं पेळल्पडुगु। कश्चिज्जीवनु पद्मलेश्र्याय बंदु तेजोलेश्येयं पोद्दिदनागळु ५ पद्मलेश्ययंतरं प्रारंभमादुदु । आ तेजोलेश्ययोळंतर्मुहूर्त्तकालमिर्दु सौधर्मकल्पद्वयवोळ पल्या.
संख्यातेकभागाभ्यधिकद्विसागरोपमस्थितिकदेवनागिल्लि बळिचि बंदू मुन्निनंते एकेंद्रियविकलेंद्रियपंचेद्रियजीवंगळोळु पुट्टि क्रमदिदं आवलियसंख्यातेकभागमात्रपुद्गलपरावर्तनंगळं संख्यातसहस्रवषंगळ निदुर्दु पंचेंद्रियदो भविसिद प्रथमसमयं मोदलगोंडु कृष्णनोलकपोततेजोलेश्यगळोळं
तर्मुहूर्तातर्मुहूत्तंगळनिर्दु पद्मलेश्येयं पोदिदं इंतु पंचांतर्मुहूत्तळिंदमधिकमाद संख्यातसहस्र१० वर्षगळिनधिकमप्प पल्यासंख्यातेकभागाभ्यधिकसागरोपमद्वयाभ्यधिकमप्पावल्यसंख्यातैकभागमात्र
पुद्गलपरावर्तनंगळु पद्मलेश्ययोळुत्कृष्टांतरमक्कुं। शुक्ललेश्ययोमित वक्तव्यमक्कुमावोउमिदु विशेषं । शुक्ललेयर्यायदं बंदु पद्मलेश्येयं पोद्दियल्लियंतर्मुहूर्त्तमिर्दु तेजोलेश्ययं पोद्दि अल्लियुमंतर्मुहूर्तमिर्दु मुन्निनंत सौधम्मद्वयदोळु पल्यासंख्यातेकभागविंदमधिकमप्प सागरोपमद्वयमनल्लिय स्वस्थितियनिर्दु बळिचि एकेंद्रियंगळोळावल्यसंख्यातेकभागमात्रपुद्गलपरावर्तनंगळं विकलेन्द्रियो भूत्वा संख्यातसहस्रवर्षाणि भ्रान्त्वा पञ्चेन्द्रियो भूत्वा तद्भवप्रथमसमयात्कृष्णनीलकपोतलेश्यासु एकैकान्तर्मुहूर्त स्थित्वा तेजोलेश्यां गच्छति । इति षडन्तर्मुहूर्तसंख्यातसहस्रवर्षावल्यसंख्यातकभागमात्रपुद्गलपरावर्तनान्युत्कृष्टान्तरं भवति । पद्मायां कश्चिस्थित्वा तेजोलेश्यां गतस्तदा पद्मान्तरं प्रारब्धं तत्रान्तर्मुहूर्त स्थित्वा सौधर्मद्वये पल्यासंख्यातकभागाधिकसागरोपमद्वयं स्थितः च्युत्वा प्राग्वदेकविकलेन्द्रियेषु क्रमेणावल्यसंख्या
तैकभागमात्रपुद्गलपरावर्तनसंख्यातसहस्रवर्षाणि स्थित्वा पञ्चेन्द्रियभवप्रथमसमयात् कृष्णनीलकपोततेजोलेश्यासु २० एकैकान्तर्मुहूर्त स्थित्वा पां गच्छति । इति पञ्चान्तर्मुहूर्तसंख्यातसहस्रवर्षपल्यासंख्यातकभागाधिकसागरोपम
द्वयावल्यसंख्यातकभागमात्रपुद्गलपरावर्तनानि उत्कृष्टान्तरं भवति । एवं शुक्लायामपि, किन्तु शुक्लातः पद्मां गया। पश्चात् कपोत, नील और कृष्णलेश्यामें एक-एक अन्तर्मुहूर्त रहकर एकेन्द्रिय हो गया। आवलीके असंख्यातवें भागमात्र पुद्गल परावर्तन काल एकेन्द्रियोंमें भ्रमण करके विकलेन्द्रिय हुआ। विकलेन्द्रियोंमें संख्यात हजार वर्ष तक भ्रमण करके पंचेन्द्रिय हुआ। पंचेन्द्रियके भवके प्रथम समयसे कृष्ण, नील, कापोतलेश्यामें एक-एक अन्तर्मुहूर्त ठहरकर तेजोलेश्यामें चला जाता है। इस प्रकार छह अन्तर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्षे तथा आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र पुद्गल परावर्तन तेजालेश्याका उत्कृष्ट अन्तर है। पद्मलेश्यामें रहकर कोई जीव तेजोलेश्यामें चला गया। तब पद्मलेश्याका अन्तर प्रारम्भ हुआ। वहाँ अन्तर्मुहूर्त तक रहकर सौधर्म युगलमें पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक दो सागर तक रहा। वहाँसे च्युत होकर पहलेकी तरह एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियों में क्रमसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र पुद्गल परावर्तन तथा संख्यात हजार वर्ष तक रहकर पंचेन्द्रिय हुआ। भवके प्रथम समयसे कृष्ण, नील, कपोत और तेजोलेश्यामें एक-एक अन्तर्मुहूर्त ठहरकर पद्मलेश्यामें जाता है। इस प्रकार पाँच अन्तर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्ष, पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक दो सागर, आवलीके असंख्यातवें भाग पुद्गल परावर्तन
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