Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे राशि भव्यराशिय परिमाणमक्कं १३-1 इल्लि संसारिजीवंगळ परिवर्तनं पेळल्पडुगुं। परिवर्तनं परिभ्रमणं संसरणमें दनातरमक्कुमदुवु द्रव्यक्षेत्रकालभवभावभेददि पंचविधमक्कुल्लि द्रव्यपरिवर्तनं नोकर्मकर्मपरिवर्तनभेददिदं द्विविधमकुमल्लि। नोकर्मपरिवर्तनमें बुदु मूलं शरीरंगळ्गरुं पर्याप्तिगळ्गे योग्यंगळप्पुवावु कलवु पुद्गलंगळ वोलजीवनिंदमोंदु समयदोळु कैकोळल्पट्ट ५ स्निग्धरूक्षवर्णगंधादिर्गाळदं तीवमंदमध्यमभावदिदमुं यथास्थितंगळु द्वितीयादिसमयंगळोळु निज्जीणंगळु । अगृहीतंगळनंतवारंगळं कळेदु मिश्रकंगळनू अनंतवारंगळं कळेदु मध्यदोळु गृहीतं. गळनुमनंतवारंगळं परगिक्कि आपुद्गलंगळे आ प्रकारदिदमे आ जीवन नोकर्मभावमनप्दल्पडुववन्नेवरमा समुदितं कालं नोकर्मद्रव्यपरिवर्तनमक्कुमदेतेंदोडा पुद्गलपरिवर्तनकालं अगृहीत
ग्रहणाद्धिये , मिश्रग्रहणाद्धिये दुं त्रिविधमक्कुमल्लि विवक्षितनोकर्मपुद्गलपरिवर्तनमध्यदोळु १० अगृहीतंगळ ग्रहणकालमनगृहीतग्रहणाद्धिये बुदु गृहीतंगळ ग्रहणकालं गृहीतग्रहणाद्धिय बुदु । युग
पदुभयग्रहणकालं मिश्रग्रहणाद्विय बुदक्कुमिवल्लर परिवर्तनक्रममिदु । विवक्षितनोकर्मापुद्गल. परिवर्तनप्रथमसमयं मोदल्गोंडु निरंतरमगृहीतंगळननंतवारंगळं कळेदोम्में मिश्रग्रहणमक्कुं मत्तम. भव्यराशिप्रमाणं भवति १३-अत्र संसारिणां परिवर्तनमुच्यते । परिवर्तनं परिभ्रमणं संसार इत्यनन्तरम् । तत्
द्रव्यक्षेत्रकालभवभावभेदात्पञ्चधा । तत्र द्रव्यपरिवर्तनं कर्मनोकर्मभेदावेधा । तत्र नोकर्मपरिवर्तनं नाम १५ शरीरत्रयस्य षट्पर्याप्तीनां च योग्याः पुद्गलाः केनचिज्जीवेन एकस्मिन् समये गृहीताः स्निग्धरूक्षवणंगन्धादिभिः
तीव्रमन्दमध्यमभावेन यथावस्थिताः द्वितीयादिसमयेषु निर्जीर्णाः, अगृहीताननन्तवारानतीत्य मिश्रकाननन्तवारानतीव्य मध्ये गृहीताननन्तवारानतीत्य त एव पुद्गलाः तेनैव प्रकारेण तस्यैव जीवस्य नोकर्मभावं गच्छेयुस्तावान् समुदितकालो नोकर्मद्रव्यपरिवर्तनं भवति । तद्यथा-तत्पुद्गलपरिवर्तनकालो गृहीतग्रहणाद्धा गृहीतग्रहणाद्धा मिश्रग्रहणाद्धेति त्रिविधः । तत्र अगृहीतग्रहणकाल: अगृहीतग्रहणाद्धा। गृहीतग्रहणकालो गृहीतग्रहणाद्धा, युगपदुभयग्रहणकालो मिश्रग्रहणाद्धा। तेषां परिवर्तनक्रमोऽयं विवक्षितनोकर्मपदगलपरिवर्तनप्रथमसमयादारभ्य निरन्तरमगृहीताननन्तवारानतीत्य सन्मिश्र ग्रहणं, पुनः निरन्तरमगृहीताननन्तवारानतीत्य सकृन्मिश्रग्रहणं
अभव्यराशिका परिमाण घटानेपर भव्यराशिका प्रमाण होता है। यहाँ संसारी जीवोंके परिवर्तन कहते हैं। परिवर्तन परिभ्रमण और संसार ये शब्द एकार्थक हैं। परिवर्तन द्रव्य,
क्षेत्र, काल, भव और भावके भेदसे पाँच प्रकारका है। उनमें से द्रव्यपरिवर्तन कर्म और २५ नोकर्मके भेदसे दो प्रकारका है। नोकर्म परिवर्तन इस प्रकार होता है-तीन शरीर छह पर्याप्तियोंके योग्य पुद्गल किसी जीवने एक समयमें ग्रहण किये। स्निग्ध- रूक्ष,वर्ण,गन्ध
आदि तथा तीव्र, मन्द या मध्यम भावसे जैसे ग्रहण किये, दूसरे आदि समयोंमें उनकी निर्जरा हो गयी। उसके पश्चात् अनन्त बार अगृहीतको ग्रहण करके छोड़े, अनन्त बार
मिश्रको ग्रहण करके छोड़े। मध्यमें अनन्त बार गृहीतको ग्रहण करके छोड़े। तब वे ही ३० पुद्गल उसी प्रकारसे उसी जीवके नोकर्म भावको जब प्राप्त हों, उतना सब काल नोकर्म द्रव्य परिवर्तन होता है।
पुद्गल परिवतेनका काल अगृहीतग्रहणाद्धा, गृहीत ग्रहणाद्धा और मिश्र ग्रहणाद्धाके भेदसे तीन प्रकार है। अगृहीत ग्रहणके कालको अगृहीत ग्रहणद्धा कहते हैं। गृहीतग्रहणके
कालको गृहीत ग्रहणद्धा कहते हैं और एक साथ गृहीत और अगृहीतके ग्रहणकालको ३५
मिश्रग्रहणद्धा कहते हैं। उनके परिवर्तनका क्रम इस प्रकार है-विवक्षित नोकर्म पुद्गल परिवर्तनके प्रथम समयसे लेकर निरन्तर अनन्त बार अगृहीतको ग्रहण करके एक बार मिश्रको ग्रहण करता है । पुनः निरन्तर अनन्त बार अगृहीतको ग्रहण करके एक बार मिश्रको
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