Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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७६०
गो. जीवकाण्डे
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लोकपूर
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स्पर्शाधिकारमं सार्द्धगाथाषट्कदिदं पेळ्दपं:
फासं सव्वं लोयं तिट्ठाणे असुहलेस्साणं ॥५४५॥ स्पर्शः सर्वलोकत्रिस्थाने अशुभलेश्यानां ॥
अशुभलेश्यात्रयक्के स्वस्थानमें दुं समुद्घातमै दुं उपपादमे वितु सामान्यदिदं त्रिस्थानमक्कु१० मल्लिया त्रिस्थानदोळं स्पर्शः स्पर्श सवलोकः सव्वलोकमक्कुं।= विशेषदि स्वस्थानस्वस्थानादिदशपदंगळोळं स्पर्श फेळल्डुगुं।
स्पर्शमै बुदेने दोडे स्वस्थानस्वस्थानादिदशपदंगळोळ विवक्षितपदपरिणतंगळप्प जीवंगळिदं वर्तमानक्षेत्रसहितमागियतीतकालदोळु स्पृष्टक्षेत्रं स्पर्शमेंबुदक्कुमल्लि अन्नेवरं कृष्णलेश्याजीवंगळगे स्वस्थानस्वस्थानवेदना कषाय मारणान्तिक उपपादमें ब पंचपदंगळोळु स्पशं सर्वलोकमक्कुंजविहार
अशभलेश्यात्रयस्य स्वस्थानसमुद्घातोपपादसामान्यस्थानत्रये स्पर्शः विवक्षितपदपरिणतर्वर्तमानक्षेत्रसहितातीतकालस्पष्टक्षेत्रलक्षणः सर्वलोकः = विशेषेण तु दशपदेषु उच्यते। तत्र कृष्णलेश्याजीवानां स्वस्थानस्वस्थानवेदनाकषायमारणान्तिकोपपादेषु पञ्चपदेषु सर्वलोकः= विहारवत्स्वस्थाने संख्यातसूच्यगुलो
आगे साढ़े छह गाथाओंसे स्पर्शाधिकार कहते हैं
क्षेत्रमें तो केवल वर्तमान कालमें रोके गये क्षेत्रका ही प्रहण होता है, किन्तु स्पर्शमें वर्तमान क्षेत्र सहित अतीत कालमें स्पृष्ट क्षेत्रका ग्रहण होता है । अतः तीन अशुभ लेश्याओंका स्पर्श स्वस्थान, समुद्धात और उपपाद इन तीन सामान्य स्थानोंमें सर्वलोक होता है। विशेष रूपसे दस स्थानोंमें कहते हैं-उनमें से स्वस्थान स्वस्थान, वेदना-समुद्धात, कषाय-समुद्धात, मारणान्तिक और उपपाद इन पाँच स्थानोंमें कृष्णलेश्यावाले जीवोंका स्पर्श सर्वलोक है । विहारवत्स्वस्थानमें एक राजू लम्बा व चौड़ा और संख्यात सूच्यंगुल ऊँचा तिर्यक् लोक
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