Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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| ९।
४
४।६५ = १
पहारवत्स्वस्थान =४।६।१
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७४९ वगाहनमं वासो तिगुणो परिहीत्यादि २००० ३ | २००० २००० लब्धं संख्यातघनांगुलंगाळदं गुणिसि स्व = स्व = = ४ । ६१ विहारवत्स्वस्थान =४।६।१
४। ६५ ।। ५५ मत्तमान वार्द्धमादिदं ६ १।९ तृतीयचतुर्थराशिगळुमं गुणियिसु वेद = ४६ ॥ ७१९ कषा
- ४॥६५-१६।५।५। ५. =६। । ...........९ इंतु गुणिसुत्त विरलु स्वस्थानस्वस्थानादि चतुःपदंगळोळ ४। ६५=१।६।५।५।५।२ क्षेत्रंगळप्पुवु । मत्त सनत्कुमारमाहेंद्र देवराशियं निजेकादशमूलभाजितजगच्छ्रेणिप्रमितमं संख्यात- ५ दिदं भागिसि बहुबहुभागमं स्वस्थानस्वस्थानदोलित्त दे दरिवुदु --४ शेषैकभागमं संख्यातदिदं खंडिसिद बहुभागमं विहारवत् स्वस्थानदोलित्तु दिदरिवुदु - ४ शेषैकभागं संख्यातबहुभायं
शेषकभागः कषायसमदघाते देयः -
तत्र प्रथमद्वितीयराशी क्रोशायामतन्नवमभाग४। ६५ = १६ । ५। ५। मुखविष्कम्भतिर्यग्जीवावगाहनेन वासो तिगुणो परहीत्याद्या २००० । ३ । २००० । २००० नीतसंख्यात
९।४
६
तृतीयचतुर्थराशीच
। गुणयेत् । स्व स्व- ४।६१ वि = ४।६१
४।६५-१६ । ५ ४ । ६५ -१६ । ५ । ५
तन्नवार्धमात्रेण ६
।९ गुणयेत् । वेद
-४।६।९
कषा = ६१।९
४ । ६५-१६ । ५५५ ४ । ६५ -१६।५। ५। ५ तथा सति स्वस्थानादिचतुःपदेषु क्षेत्राणि भवन्ति । पुनः सनत्कुमारमाहेन्द्रदेवराशी निजैकादशमूलभाजितजगच्छ्रे
णिप्रमिते ११ संख्यातेन भक्तभक्तस्य बहभागबहभागः स्वस्थानस्वस्थाने ११ । ५ । विहारवत्स्वस्थाने १११५५ भाग कषाय समुद्घातका जानना। इस प्रकार जीवोंकी संख्या जानना। पद्मलेश्यावाले तिथंच जीवोंकी अवगाहना बहुत है। अतः यहाँ उनकी मुख्यतासे क्षेत्रका कथन करते हैं- १५ स्वस्थान-स्वस्थान और विहारवत्स्वस्थानमें एक तियेच जीवकी अवगाहना एक कोस लम्बी
और उसके नौवें भाग मुखका विस्तार है। इसका क्षेत्रफल 'वासोतिगुणो परिडी' इत्यादि सूत्रके अनुसार संख्यात घनांगुल होता है। इससे स्वस्थानस्वस्थानवाले जीवोंकी संख्याको गुणा करनेपर स्वस्थानस्वस्थान सम्बन्धी क्षेत्र होता है । इसे विहारवतस्वस्थानवाले जीवोंकी संख्यासे गुणा करनेपर विहारवत्स्वस्थानका क्षेत्र होता है। उक्त अवगाहनासे २० पूर्वोक्त प्रकारसे साढ़े चार गुना क्षेत्र एक जीवकी अपेक्षा वेदना और कषाय समुद्घातमें होता है। इससे पूर्वोक्त वेदना और कषाय समुद्घातवाले जीवोंकी संख्या में गुणा करनेसे वेदना और कषाय समुद्घातकी अपेक्षा क्षेत्र होता है।
वैक्रियिक समुद्घातमें पद्मलेश्यावाले जीव सानत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्गमें बहुत हैं, इसलिए उनकी अपेक्षा कथन करते हैं-सानत्कुमार माहेन्द्र में देवोंकी संख्या जगतश्रेणीके २५
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