Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७४५ ई राशियं रज्जुसंख्यातैकभागायामसूच्यंगुलसंख्यातैकभागविष्कंभोत्सेधक्षेत्रद २ २ घनफलभूत
प्रतरांगुलसंख्यातेकभागगुणितजगच्छेणिसंख्यातैकभागदिदं गुणिसुत्तं विरलु मारणांतिकसमुद्घातक्षेत्रमक्कुं ४ । ६५ = । ८१ । १० । २१ प प ०१-४ मत्तं द्वादश योजनायामनवयोजनविष्कंभ
aa पपप१११
a a a सूच्यंगुलसंख्यातेकभागोत्सेध २ ९ क्षेत्रघनफलमसंख्यातघनांगुलप्रमितमं संख्यातजीवंगळिंदगुणि
यो १२
बहुभागं त्यक्त्वा एकभागो दूरमारणान्तिकजीवराशिर्भवति-- प प १
aa . ४। ६५-८१ । १०।११पपप
aaa अस्मिन्मारणान्तिकसमुद्घातकालान्तर्मुहूर्तसंभविशुद्धशलाकाभिः । १ संगुण्य एकसमयेन भक्ते सर्वदूरमारणान्ति
कसमुद्घातजीवप्रमाणं भवति ।- प प १।१ अस्मिन् रज्जुसंख्यातकभागाया
a ao ४ । ६५-८१ । १०।११पपप
aaa मसूच्यङ्गुलसंख्यातैकभागविष्कम्भोत्सेधक्षेत्रस्य २ । २ घनफलेन प्रतराङ्गुलसंख्यातकभागगुणितजगच्छ्रोणि
संख्यातकभागेन- ४ गुणिते दूरमारणान्तिकसमुद्धातस्य क्षेत्रं भवति
वाले जीव हैं और एक भाग प्रमाण दूरवर्ती क्षेत्रमें समुद्घात करनेवाले जीव हैं । मारणा- १० न्तिक समुद्घातका काल अन्तर्मुहतमात्र है। दूर मारणान्तिक समुद्रात करनेवाले जीवोंकी राशिमें अन्तर्मुहूर्तके समयोंसे गुणा करनेपर सब दूर मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले जीवोंका प्रमाण होता है। दूर मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले एक जीवके प्रदेश शरीरसे बाहर फैलें, तो मुख्य रूपसे एक राजूके संख्यातवें भाग लम्बे और सूच्यंगुलके संख्यातवें भाग प्रमाण चौड़े व ऊँचे क्षेत्रको रोकते हैं। इसका घनक्षेत्रफल प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे १५ जगतश्रेणिके संख्यातवें भागको गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उतना है। इससे दूर मारणान्तिक समुद्घात करनेवाले सब जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर सब जीवोंके दूर मारणान्तिक समुद्घातका क्षेत्र होता है। अन्य मारणान्तिक समुद्घातका क्षेत्र थोड़ा होनेसे मुख्य रूपसे इसीका ग्रहण किया है। तैजस समुद्घातमें आत्मप्रदेश शरीरसे बाहर निकलनेपर बारह योजन लम्बे, नौ योजन चौड़े और सूच्यंगुलके संख्यातवें भाग प्रमाण ऊँचे क्षेत्रको २० रोकते हैं। इसका घनक्षेत्रफल संख्यात घनांगुल प्रमाण होता है। इससे तैजस समुद्घात
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