Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे आवलिअसंखभागा इच्छिदगच्छधणमाणमेत्ताओ।
देसावहिस्स खेत्ते काले वि य होति संवग्गे ||४१७ । आवल्यसंख्यभागा ईप्सितगच्छधनमानमात्राः। देशावधेः क्षेत्रे कालेऽपि च भवंति संवर्गे ॥
परमावधिज्ञानविषयंगळप्प क्षेत्रकालंगळु तंतम्म जघन्यं मोदल्गोंडु असंख्यातगणितक्रमदिदं परमावधिज्ञानसर्वोत्कृष्टपथ्यंतमविच्छिन्नरूपदिदं नडेववंतु नडेव क्षेत्रकालविकल्पंगलावडयोळु विवक्षितंगळप्पुवल्लि देशावधिज्ञानविषयोत्कृष्टक्षेत्रकालमात्रगुण्यंगळग आवल्यसंख्यातभागगुणकारंगळु तद्विवक्षितगच्छधनमानमात्रंगळु संवर्गंगळागुत्तिरलु तावन्मात्राऽसंख्यातगुणितक्रमंगळे दरियल्पडुवदेते दोड परमावधिज्ञानप्रथमविकल्पदोळु आवल्यसंख्यातभागगुणकारंगळु
तद्गच्छमों ददर संकलितधनमात्रंगळु १२ अप्पुर्व दल्लियों दोंदे गुणकारमक्कु = ८ प- । ८ १० मंते विवक्षितद्वितीयविकल्पदोळु तद्गच्छसंकलनधनमानमात्रंगळप्पुवु २३ मूरू मूरू गुणकार
२१॥ गळप्पुवु १८८८ । प-१८८८ अंते विवक्षिततृतीयविकल्पदोळ तद्गच्छसंकलनधनमानमात्रंगळ
aaaaaa प्पुवु ३। ४ वेदारारप्पुवु =८८८८८८ । प-१८८८८८८ मी प्रकारविंदं विवक्षितचतुर्थविकल्प
२।१ दोळु तद्गच्छसंकलनधनमानमात्रंगळप्पुवु ४।५ वेंदु पत्तुं पत्तुं गुणकारंगळप्पुवु ३८ । १० ष-१।८।१० मिते पंचमविकल्पदोळ तद्गच्छसंकलनधनमात्रंगळप्पु २६ वेंदु
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परमावधेविवक्षितक्षेत्रविकल्पे विवक्षितकालविकल्पे च तद्विकल्प्यस्य यावत्संकलितधनं तावत्प्रमाणमात्रा आवल्यसंख्येयभागाः परस्परं संवर्गे देशावधेरुत्कृष्टक्षेत्रे उत्कृष्टकालेऽपि च गुणकारा भवन्ति । ततस्ते गुणकाराः प्रथमविकल्पे एकः । द्वितीयविकल्पे त्रयः । तृतीयविकल्पे षट् । चतुर्थविकल्पे दश । पञ्चमविकल्पे पञ्चदश एवं
परमावधिके विवक्षित क्षेत्र और विवक्षित कालके भेदमें उस भेदका जितना संकलित धन हो, उतने प्रमाण आवलीके असंख्यातवें भागोंको परस्परमें गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे,उतना देशावधिके उत्कृष्ट क्षेत्र और उत्कृष्ट कालमें गुणकार होते हैं। वे गुणकार प्रथम भेदमें एक, दूसरे भेदमें तीन, तीसरे भेदमें छह, चतुर्थ भेदमें दस, पंचम भेदमें पन्द्रह इस प्रकार अन्तिम भेद पर्यन्त जानना ।
विशेषार्थ-जिस नम्बरके भेदकी विवक्षा हो, एकसे लगाकर उस भेद पर्यन्तके एकएक अधिक अंकोंको जोड़नेसे जो प्रमाण आवे, उतना ही उसका संकलित धन होता है । जैसे २५ प्रथम भेदमें एक ही अंक है। अतः उसका संकलित धन एक जानना। दूसरे भेदमें एक और
दोको जोड़नेपर संकलित धन तीन होता है। तीसरे भेदमें एक, दो तीनको जोड़नेसे संकलित धन छह होता है। चौथे भेदमें उसमें चार जोड़नेसे संकलित धन दस होता है। पाँचवें भेदमें पाँचका अंक और जोड़नेसे संकलित धन पन्द्रह होता है। सो पन्द्रह जगह
आवलीके असंख्यातवें भागोंको रखकर परस्पर में गुणा करनेसे जो परिमाण हो,वही पाँचवें ३० भेदका गुणकार होता है। इस गुणकारसे उत्कृष्ट देशावधिके क्षेत्र लोकको गुणा करनेपर जो
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