Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका काऊ णीलं किण्हं परिणमदि किलेसवड्ढिदो अप्पा ।
एवं किलेसहाणीवडढीदो होदि असुहतियं ॥५०२॥ कपोतं नीलं कृष्णं परिणमति क्लेशवृद्धित आत्मा । एवं क्लेशहानिवृद्धितोऽशुभत्रयं भवति।
संक्लेशवृद्धियिंदमात्म कपोतनीलकृष्णलेश्यारूप तप्पुदंते परिणमदि परिणमिसुगुमितु ५ संक्लेशहानिवृद्धिळिदमशुभत्रयरूपनक्कुं।
तेऊ पम्मे सुक्के सुहाणमवरादि अंसगे अप्पा ।
सुद्धिस्स य वड्ढीदो हाणीदो अण्णहा होदि ॥५०३।। तेजसि पद्म शुक्ले शुभानामवरायंशके आत्मा विशुद्धेश्च वृद्धितो हानितोऽन्यथा भवति ।
शुभंगळप्प तेजःपद्मशुक्ललेश्यगळ जघन्या_शंगळोळात्म विशुद्धिवृद्धियिदं भवति परिणमि- १० सुगुं। हानितोऽन्यथा भवति विशुद्धिय हानियिदं शुक्ललेश्योत्कृष्टं मोदल्गोंडु तेजोलेश्याजघन्यांशपय्यंतं भवति परिणमिसुगुं । संदृष्टि :
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अशुभलेश्या स्थानानि ९० ८सव्वधनं = शुभलेश्या स्थानानि ९ ।१ तीव्रतमकृष्ण तिव्वतरणीळ तिव्वकओत मंदतेज मंदतरपन मंदतमशुक्ल उ०००००ज उ००००००ज उ००००००ज ज००००० उ ज०००००उज०००००उ Da८८ =1८1८ = 1८।१ 20८।। ८
१
९९९ परिणामाधिकारं तृतीयं समाप्तमायतु ।
अनंतरं संक्रमणाधिकारमं गाथात्रयदिदं स्वस्थानपरस्थानसंक्रमणमनि परिणामपरावृत्तिरचनयं कटाक्षिसिको डु पेन्दपं ।।
संक्लेशवृद्धयात्मा कपोतनीलकृष्णलेश्यारूपेण परिणमति इति संक्लेशहानिवृद्धिभ्यामशुभत्रयरूपो भवति ॥५०२॥
शुभानां तेजःपद्मशुक्ललेश्यानां जघन्यायशेषु आत्मा विशुद्धिवृद्धितो भवति परिणमति, हानितोऽन्यथा शक्लोत्कृष्टात्तेजोजघन्यांशपर्यन्तं परिणमति ॥५०३।। इति परिणामाधिकारः। उक्तपरिणामपरावृत्तिरचनां मनसिकृत्य संक्रमणाधिकारं गाथात्रयेणाह
तथा संक्लेश परिणामों में वृद्धि होनेसे कापोत, नील और कृष्ण लेश्यारूपसे परिणमन करता है। इस प्रकार संक्लेश परिणामोंमें हानि, वृद्धि होनेसे तीन अशुभ लेश्या रूपसे २५ परिणमन करता है ॥५०२।।।
शुभ तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याओंके जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट अंशोंमें आत्मा विशुद्धिकी वृद्धिसे परिणमन करता है। और विशुद्धिकी हानिसे अन्यथा अर्थात् शुक्ल लेश्याके उत्कृष्ट अंशसे तेजोलेश्याके जघन्य अंश तक परिणमन करता है ॥५०॥
इस प्रकार परिणामाधिकार समाप्त हुआ।
उक्त परिणामोंके परिवर्तनकी रचनाको मनमें रखकर तीन गाथाओंसे संक्रमण अधिकारको कहते हैं
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