Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे ___ तेजोलेश्याजीवंगळु पद्मलेश्याजीवंगलं प्रत्येकमसंख्येयकल्पंगळागुत्तं तेजोलेश्याजीवंगळं नोडलु पद्मलेश्याजीवंगळु संख्यातगुणहीनंगळप्पुवु । ते क १। पद्म क । शुक्लाः शुक्ललेश्याजीवंगळु पल्यासंख्येय भागाः पल्यासंख्यातेक भागमात्रंगळप्पुवु प इंतु कालप्रमाणदिदं शुभलेश्यात्रयजीवंगळु पेळल्पटुवु । अवधेरसंख्येयभागास्तेजस्त्रयो भावतो भवंति अवधिज्ञानविकल्पंगळ असंख्येयभागंगळु ५ प्रत्येकमागुत्तमा मूरु लेश्यगळ जीवंगळ संख्यातगुणहीनंगळुमसंख्यातगुणहीनंगळुमप्पुवु । ते ओ(१)। पओ (१)। शुओ (१) इंतु भावप्रमादिदं शुभलेश्यात्रयजीवंगळु पेळल्पटुवु :
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इंतु पत्तनेय संख्याधिकारंतिदुदु ।
अनंतरं क्षेत्राधिकारमं पेन्दपं:wrown.mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmrat----- -
तेजोद्वयजीवाः प्रत्येकमसंख्येयकल्पा अपि तेजोलेश्येभ्यः पद्मलेश्याः संख्यातगुणहीनाः ते का पक। शक्ललेश्याः पल्यासंख्यातकभागमात्रा भवन्ति प इति कालप्रमाणेन शभलेश्यात्रयजीवा उक्ताः ।
तेजस्त्रयजीवाः प्रत्येक अवधिज्ञानविकल्पानामसंख्येयभागाः तथापि संख्यातासंख्यातगुणहीना भवन्ति . ते ओ ओ शु ओ इति भावप्रमाणेन शुभलेश्यात्रयजोवा उताः ॥५४२॥ इति संख्याधिकारः॥
a aq aga अथ क्षेत्राधिकारमाह
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावाले जीव प्रत्येक असंख्यात कल्पप्रमाण हैं, फिर भी तेजो१५ लेश्यावालोंसे पद्मलेश्यावाले संख्यातगुणा हीन हैं । शुक्ललेश्यावाले पल्यके असंख्यातवें भाग
मात्र होते हैं। इस प्रकार काल प्रमाणसे तीन शुभलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण कहा। तेजोलेश्या आदि तीन लेश्यावाले जीव प्रत्येक अवधिज्ञानके भेदोंके असंख्यातवें भाग हैं , तथापि तेजोलेश्यावालोंसे पद्मलेश्यावाले संख्यातगुणे हीन हैं और पद्मलेश्यावालोंसे शुक्ललेश्यावाले
असंख्यातगणे हीन हैं। इस प्रकार भावप्रमाणसे तीन शभलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण २० कहा ॥५४२॥
इस प्रकार संख्याधिकार समाप्त हुआ। अब क्षेत्राधिकार कहते हैं
१. म प्रती संदृष्टिर्न ।
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