Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
इंतु क्षेत्रप्रमादिदं पालेश्येय जीवंगळु पेळल्पद्रुवु। शुक्ललेश्याजीवंगळु सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्रमप्परु २ सू। इंतु तेजोलेश्यादिशुभलेश्याजीवंगळु
४। ६५ = ११११११
क्षेत्रप्रमाणदिदं पेळल्पदृरु।
बेसदछप्पण्णंगुल कदिहिद पदरं तु जोइसियमाणं ।
तस्स य संखेज्जदिमं तिरिक्खसण्णीण परिमाणं ॥५४१।। षट्पंचाशदधिकद्विशतांगुलकृतिहतप्रतरस्तु ज्योतिष्काणां मानं। तस्य च संख्येयं तिर्यक्संजिनां मानं ॥
इल्लि तेजोलेश्याजीवंगळ प्रमाणमं पद्मलेश्याजीवंगळ प्रमाणमं पेरगणनंतरसूत्रदोन्पेन्दुदं विशदं माडल्वेडि ज्योतिष्कर प्रमाणुमं संज्ञिजीवंगळ प्रमाणमुमनी सूत्रदि पेळ्दपरल्लि ज्योतिष्क प्रमाणमं षट्पंचाशदुत्तरद्विशतांगुलकृतिहृतजगत्प्रतरप्रमितमक्कु। संज्ञिजीवंगळ प्रमाणमुमदर संख्येय भागमक्कु ॥ ४॥ ६५ = ४।६५ = १
तेउदु असंखकप्पा पल्लासंखेज्जभागया सुक्का ।
ओहि असंखेज्जदिमा तेउतिया भावदो होति ॥५४२॥ तेजोद्वयमसंख्यकल्पाः पल्यासंख्येयभागाः शुषलाः। अवधेरसंख्यभागास्तेजस्त्रयो भावतो भवंति ॥ संख्यातगुणहोना भवन्ति । पद्मलेश्यातिर्यग्राशी स्वकल्पजमनुष्यः साधिकमात्रत्वात्संदृष्टिः--
___शुक्ललेश्या जीवाः सूच्यङ्गुलासंख्यातकभागमात्रा भवन्ति । ४। ६५%११११११ २ सू इति तेजस्त्रयजीवाः क्षेत्रप्रमाणेनोक्ताः ॥५४०॥ as
प्रागुक्तं तेजःपद्मलेश्याजीवप्रमाणं स्पष्टीकर्तुमाह-ज्योतिष्कप्रमाणं वेसदछप्पण्णङ्गुलकृतिभक्तजगत्प्रतरमात्र - संज्ञितिर्यकप्रमाणं च तत्संख्ययभागः = ॥५४१॥
२० ४।६५-१ संख्यातगुणा हीन होनेपर भी तेजोलेश्यावाले संज्ञी तिर्यंचोंसे भी संख्यातगुणा हीन होते हैं, क्योंकि पद्मलेश्यावाले तियचोंकी राशिमें पद्मलेश्यावाले कल्पवासीदेव और मनुष्योंका प्रमाण मिलनेसे पद्मलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है। शुक्ललेश्यावाले जीव सूच्यंगुल के असंख्यातवें भागमात्र होते हैं। इस प्रकार क्षेत्र प्रमाणसे तीन शुभलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण कहा ॥५४०॥
पहले जो तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण कहा, उसे स्पष्ट करते हैंज्योतिष्कदेवोंका प्रमाण दो सौ छप्पन अंगुलके वर्गसे अर्थात् पण्णट्ठी प्रमाण प्रतरांगुलका भाग जगत्प्रतरमें देनेसे जो प्रमाण आवे, उतना है और इनके संख्यातवें भाग संज्ञी तियचोंका प्रमाण है ।।५४१॥
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