Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
haणाणातिमभागा भावादु किण्हतियजीवा । तेउतिया संखेज्जा संखासंखेज्जभागकमा ॥५३९||
केवलज्ञानानंतैकभागाः भावात् कृष्णत्रयजीवाः । तेजस्त्रयोऽसंख्येयाः संख्यासंख्यात भाग
क्रमाः ॥
भावप्रमाणदिदं कृष्णादित्रयलेश्याजीवंगळु प्रत्येकं केवलज्ञानानंतैकभागमात्रंगळ पुवंतागुत्त किंचिदूनक्र मंगळे यप्पुवु । भा । कृ । के । नी ख । क । के = इल्लियुं त्रैराशिकं माडलपडुगुं
ख
ख
प्र १३ - फश १ । इ के । लब्धश के मत्तं प्र के फ के । इश १ लब्ध के । तेजोलेश्यादि
३ -
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१३.
-
३
त्रयजीवंग द्रव्यप्रमार्णादिदम संख्यातंगळप्पूवुमंतागुतं संख्यातभाग मुम संख्यात भागक्रम मुमप्पुवु ।
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ते = १ । पa । शु
१३ -
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जोsसियादो अहिया तिरिक्खसण्णिस्स संखभागो दु । सूइस्स अंगुलस्स य असंखभागं तु तेउतियं ॥ ५४० ॥ ज्योतिषिकादधिकास्तिक्संज्ञिनः संख्यभागस्तु । सूच्यंगुलस्य चासंख्यभागस्तु तेजस्त्रयः ॥
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भावप्रमाणेन कृष्णादिलेश्या जीवाः प्रत्येकं केवलज्ञानानन्तैकभागमात्राः अपि किंचिदूनक्रमा भवन्ति । भाकृ के | नी के - 1 क के = । अत्रापि त्रैराशिकं प्र १३ - फश १ । इ के । लब्धं के अपवर्तिते ख । पुनः ३
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१३
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प्रशख । फ के । इश १ । लब्धं के । तेजोलेश्यादित्रयजोवाः द्रव्यप्रमाणेन असंख्याता अपि संख्याता संख्यात
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भागक्रमा भवन्ति । तेaaaa शु॥५३९॥
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भावप्रमाणकी अपेक्षा प्रत्येक कृष्णादि लेश्यावाले जीव केवलज्ञानके अनन्तवें भागमात्र होनेपर भी क्रमसे कुछ हीन होते हैं । यहाँ भी त्रैराशिक करना । प्रमाणराशि अपनेअपने लेश्यावाले जीवोंका प्रमाण, फलराशि एक शलाका, इच्छाराशि केवलज्ञान । ऐसा करनेपर लब्धराशिमात्र अनन्त प्रमाण हुआ । पुनः इसीको प्रमाणराशि, फलराशि एक शलाका, इच्छाराशि केवलज्ञान करनेपर केवलज्ञानके अनन्तवें भाग मात्र कृष्णादि लेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है । तेजोलेश्या आदि तीन शुभ लेश्यावाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात होनेपर भी तेजोलेश्यावालोंके संख्यातवें भाग पद्मलेश्यावाले और पद्मलेश्या - वालोंके असंख्यातवें भाग शुक्ललेश्यावाले हैं ||५३९ ||
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