Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
त्मस्वभावावस्थापेक्षालक्षणं यथाख्यातं चारित्रमित्याख्यायते ।
पंचतिहिचउविहिय अणुगुणसिक्खावएहि संजुत्ता । उच्चति देसविरया सम्माइट्ठी झलियकम्मा ||४७६॥ पंचत्रिचतुव्विधैश्च अणुगुणशिक्षाव्रतैः संयुक्ताः । उच्यंते देशविरताः सम्यग्दृष्टयो झटित
कर्माणः ॥
पंचविधाव्रतं त्रिविधगुणव्रतंगळदं चतुव्विधशिक्षाव्रतंगळदं संयुक्तरप्प सम्यग्दृष्टिगळु कर्मनिर्जरयोकू डिदवर्गळु देशविरतरेंदु परमागमदोळपेळपट्टरु | दंसणवदसामायियपो सहसचित्तराइभत्ते य ।
म्हारंभपरिग्गह अणुमणमुट्ठि देसविरदेदे ॥४७७||
दर्शनिक व्रतिकसामायिक प्रोषधोपवाससचित्तविरत रात्रिभक्तविरत ब्रह्मचार्यारंभविरतपरि- १० ग्रहविरतानुमतिविरतोद्दिष्टविरताः देशविरता एते ॥
इल्लि नामैकदेशो नाम्नि वर्त्तते एंबी न्यायदिदं छाये माडल्पदुदु । आ देशविरतभेदंगळपनों दप्पूवढे ते दोडे दर्शनिकनुं व्रतिकनु सामायिकनु प्रोषधोपवासनु सचित्तविरतनुं रात्रिभक्त विरतनुं ब्रह्मचारि आरंभविरतनुं परिग्रहविरतनुमनुमतिविरतनुमुद्दिष्टविरतनु में वितिल्लि दर्शनिकनें ।
"पंचुंबर सहियाई सत्तरं वसणाई जो विवज्जेइ ।
सम्मत्तविद्धमई सो दंसणसावयो भणिओ ।" [ वसु. श्रा. ५७ ]
६८७
यथाख्यातचारित्रमित्याख्यायते ||४७५ ||
पञ्चत्रिचतुरणुगुणशिक्षा व्रतैः संयुक्तसम्यग्दृष्टयः कर्मनिर्जरावन्तः ते देशविरताः इति परमागमे उच्यन्ते ॥४७६ ॥
अत्र नामैकदेशो नाम्नि वर्तते इति नियमाद् गाथार्थो व्याख्यायते । दर्शनिको, व्रतिकः, सामायिकः, प्रोषधोपवासः, सचित्तविरतः, रात्रिभक्तविरतः, ब्रह्मचारी, आरम्भविरतः परिग्रहविरतः अनुमतिविरतः, उद्दिष्टविरतश्चेत्येकादशैते विरतभेदाः । तत्र - " पञ्चु बरस हियाई सत्तई वसणाणि जो विवज्जेई । सम्मत्तविसुद्धमई सो दंसणसावओ भणिओ ।" ( वसु श्रा. ५७ ) इत्यादिलक्षणानि ग्रन्थान्तरेऽवगन्तव्यानि ॥ ४७७॥
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१५
समस्त मोहनीय कर्मके उपशम अथवा क्षयसे आत्मस्वभावकी अवस्थारूप लक्षणवाला २५ यथाख्यात चारित्र कहलाता है || ४७५ ||
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२०
पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतोंसे संयुक्त सम्यग्दृष्टि जो कर्मों की निर्जरा करते हैं, उन्हें परमागम में देशविरत कहते हैं || ४७६ ||
यहाँ नामका एकदेश नामका वाचक होता है, इस नियम के अनुसार गाथाका अर्थ कहते हैं.- दर्शनिक, व्रतिक, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तविरत, रात्रिभक्तविरत, ३० ब्रह्मचारी, आरम्भविरत, परिग्रहविरत, अनुमतिविरत और उद्दिष्ट विरत ये ग्यारह देशविरतके भेद हैं । पाँच उदुम्बरादिकके साथ सात व्यसनोंको जो छोड़ता है, उस विशुद्ध सम्यक्त्वधारीको दर्शनिक श्रावक कहते हैं । इत्यादि इन भेदोंके लक्षण अन्य ग्रन्थोंसे जानना ||४७७ ।।
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