Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे गुणकारंगळप्पुवु २८ । १५ । प-१ । ८ । १५ । इंतळेडयोळं व्याप्तियरियल्पडुगुं ।
परमावहिवरखेत्तेणवहिदउक्कस्स ओहिखेत्तं तु ।
सव्वावहिगुणगारो काले वि असंखलोगो दु ॥४१९॥ परमावधिवरक्षेत्रेणापहृतोत्कृष्टावधिक्षेत्रं तु । सावधिगुणकारः कालेप्यसंख्यातलोकस्तु।
परमावधिज्ञानविषयोत्कृष्टक्षेत्रप्रमादिदं अवधिनिबद्धोत्कृष्टक्षेत्रमं भागिसुत्तिरलावुदोंदु लब्धमदु तु मत्ते सर्वावधिज्ञानविषयक्षेत्रगुणकारमक्कुमावगुण्यक्किदुगुणकारमक्कुम दोडे परमावधिज्ञानविषयसर्वोत्कृष्टक्षेत्रक्कक्कुमा गुण्यगुणकारंगळं गुणिसिद लब्धं सर्वावधिज्ञानविषयक्षेत्रमक्कुमें बुदत्थं । अंतादोडा अवधिनिबद्धोत्कृष्ट क्षेत्रप्रमाणमनितेंदोड।
घणळोगगुणसळागा वग्गट्टाणा कमेण छेदणया। तेजक्कायस्स ठिदी ओहिणिबद्धं चं खेत्तं ॥ अज्झवसाणणिगोदसरीरे तेसु वि य कायठिदी जोगा।
अविभागपडिच्छेदो ळोगेवग्गे असंखेज्जे । एंबी यागमप्रमाणदिदं घनघनाधारियोळ्पेळल्पट्ट अवधिनिबद्धोत्कृष्टमसंख्यातलोकसंवर्गसंजनितलब्धराशियक्कुमी राशियं परमावधिज्ञानविषयसर्वोत्कृष्टक्षेत्रदिदं भागिसुत्तिरलु १५ = = a = a = a = a = a लब्धं यावत्तावत्प्रमाणं = as a गुणकारप्रमाणमक्कुमी
गुणकारदिदं परमावधिज्ञानविषयसर्बोत्कृष्टक्षेत्रमं = aa = a = a गुणिसिदोडे सर्वावधिज्ञानविषयक्षेत्रमे अवधिनिबद्धोत्कृष्टक्षेत्रमक्कुम बुदथं = = a = a = aad तु मत्ते
धनमात्राः षट्. ते उभये मिलित्वा गच्छधनमात्रा दशगुणकारा भवन्ति । एवं सर्वबिकल्पेषु ज्ञातव्यम् ॥४१८॥
उत्कृष्टावधिक्षेत्रं तावद् द्विरूपधनाधनधारायां लोकगुणकारशलाकावर्गशलाकार्धच्छेदशलाकातेजस्कायिक२० स्थित्यवधिनिबद्धोत्कृष्टक्षेत्राणां प्रत्येकमसंख्यातवर्गस्थानानि गत्वा गत्वोत्पन्नत्वात् पञ्चासंख्यातलोकगुणितलोकमात्रं तदेव परमावधिज्ञानविषयोत्कृष्टक्षेत्रप्रमाणेन भक्तं सत--
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उसके प्रमाणको गच्छ कहते हैं। जैसे विबक्षित भेद चौथा सो गच्छका प्रमाण चार हुआ। और तत्काल अतीत तीसरा भेद तीन, उसका गच्छ धन छह हुआ। पहला गच्छ चार और
यह छह मिलकर दस होते हैं। इतना ही विवक्षित गच्छ चारका संकलित धन होता है। २५ यही चतुर्थ भेदका गुणकार होता है । इसी प्रकार सब भेदोंमें जानना ॥४१८॥
उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र कहते हैं। द्विरूपघनाघनधारामें लोक, गुणकारशलाका, वर्गशलाका, अर्धच्छेदशलाका, अग्निकायकी स्थितिका परिमाण और अवधिज्ञानके उत्कृष्ट क्षेत्रका परिमाण, ये स्थान असंख्यातं-असंख्यात वर्गस्थान जानेपर उत्पन्न होते हैं । इसलिए
पाँच बार असंख्यात लोक प्रमाण परिमाणसे लोकको गुणा करनेपर सर्वावधिज्ञानके ३० विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्रका परिमाण आता है। उसमें उत्कृष्ट परमावधिज्ञानके विषयभूत
क्षेत्रका भाग देनेपर जो परिमाण आवे, वह सर्वावधिज्ञानके विषयभूत क्षेत्रका परिमाण लाने के लिए गुणकार होता है । इससे परमावधिज्ञानके विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्रको गुणा करनेपर सर्वावधिज्ञानके विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्रका परिमाण आता है। तथा सर्वावधिके
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