Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे नापहृतलोकच्छेदेन पदधने भक्ते । देयच्छेवंगळिदं भागिसल्पट्ट लोकच्छेदरा शियिदं प्रमाणराशियप्पुरिदं पदधने भक्ते इच्छाराशियप्प पदधनम भागिसुत्तिरलु लब्धं यावत्तावत्प्रमितलोकंगळं ग्गितसंवर्ग माडुत्तिरलु संजनितलब्धराशियदु = a = at a परमावधिज्ञानविषयमप्प
चरमक्षेत्रदोजु गुण्यमागिई लोकक्के गुणकारप्रमाणमक्कुं 3 = a = a = a कालदोळं पल्य-१ ५ 32 इनितक्कु ।
आवलि असंखभागा जहण्णदव्वस्स होति पज्जाया ।
कालस्स जहण्णादो असंखगुणहीनमेत्ता हु ॥४२२॥ आवल्यसंख्यभागाः जघन्यद्रव्यस्य भवंति पर्यायाः। कालस्य जघन्यादसंख्यगुणहीनमात्राः खलु। __ आवल्यसंख्यातभागमानंगळु देशावधिज्ञानजघन्यद्रव्यद पर्यायंगळप्पुवादोडमा जघन्य
भागानां-दे ८
परस्परगणने कियन्तो लोका उत्पद्यन्ते इति त्रैराशिकलब्धमात्राणां
इ
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० ६ । प १ ।
लोकानां = aa = a परमावधिविषयचरमक्षेत्रकालानयने लोकसमयोनपल्ययोर्गुणकारो भवति ।= । Dalal = aप-१ । Ba Daॐ॥४२१॥
___ आवल्यसंख्यातभागमात्राः देशावधिजघन्यद्रव्यस्य पर्याया भवन्ति तथापि तद्विषयजघन्यकालात् ८
१५ आवे, उतनी जगह लोकराशिको स्थापित करके परस्पर में गुणा करनेपर जो प्रमाण आके सो
उस भेदमें गुणकार होता है। उस गुणकारसे देशावधिके उत्कृष्ट क्षेत्र लोकप्रमाणको गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे उतना उस भेदमें क्षेत्रका परिमाण होता है। तथा इसी गुणकारसे देशावधिके उत्कृष्ट काल समयहीन पल्यको गुणा करनेपर उसी भेदसम्बन्धी कालका परि
माण आता है। इसी तरह परमावधिज्ञानके अन्तिम भेदमें आवलीके असंख्यातवें भागके २० अर्धच्छेदोंका भाग लोकके अर्धच्छेदोंमें देनेसे जो प्रमाण आवे, उसका भाग परमावधिज्ञानके
अन्तिम भेदके संकलित धनमें देनेपर जो लब्ध आवे, उतनी जगह लोकराशिको रखकर परस्परमें गुणा करनेपर परमावधिका अन्तिम गुणकार होता है। सो इस प्रकार त्रैराशिक करना-आवलीके असंख्यातवें भागके अर्धच्छेदोंका लोकके अर्धच्छेदोंमें भाग देनेसे जो
प्रमाण आता है उतने आवलीके असंख्यातवें भागोंको रखकर परस्परमें गणा करनेसे यदि २५ एक लोक होता है, तो यहाँ अन्तिम भेदके संकलित धन प्रमाण आवलीके असंख्यातवें
भागोंको रखकर परस्परमें गुणा करनेसे कितने लोक होंगे। ऐसा त्रैराशिक करनेपर जितना प्रमाण आवे,उतने लोकप्रमाण अन्तिम भेदका गुणकार होता है। इससे देशावधिके उत्कृष्ट क्षेत्र लोकको अथवा उत्कृष्टकाल समयहीन पल्यको गुणा करनेपर परमावधिके उत्कृष्ट क्षेत्र और कालका परिमाण होता है ॥४२॥ जघन्य देशावधि ज्ञानके विषयभूत द्रव्यकी पर्याय आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण For Private & Personal Use Only
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