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प्रथम अधिकार।
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तीनों प्रकारकी शक्तियां थी। वे सन्धि विग्रह आदि छःगुणोंको धारण करनेवाले थे। वे अर्थ, धर्म, काम सबको सिद्ध करते हुए भी अपनी कर्मेन्द्रियोंको वशमें रखते थे। उनकी विमल कीर्ति चन्द्रमाके निर्मल प्रकाशकी भांति चारों ओर व्याप्त थी। यदि ऐसा न होता तो देवांगनाओं द्वारा उनके गुणोंके गानकी आशा नहीं की जासकती थी। उनके शासनका अभूतपूर्व प्रभाव चारों ओर फैलरहा था । महाराजके शत्रुगण ऐसे व्याकुल होरहे थे, मानों उनका क्षणभरमें ही विनाश होनेवाला है। उनकी प्रभा द्वितीयाके चन्द्रमाकी क्षीण कलाकी भाति क्षीण होगयी थी। महाराज श्रेणिककी प्रतिभाके सबलोग कायल थे। उनकी प्रखर बुद्धि स्वभावसे ही प्रतापयुक्त थी। अतएव वह चारोंप्रकार की राजविद्याओंको प्रकाशित कर रही थीं। श्रेणिककी पत्नी का नाम चलना था। वह कामदेवकी पत्नी रति और इन्द्रकी इन्द्राणीकी भांति कांति और गुणोंसे सुशोभित थी। उसके नेत्र मृगके से थे। उसका मुख चन्द्रमा जैसा कांतिपूर्ण था। केश श्यामवर्णके थे। कटि क्षीण, कुच कठिन और बड़े आकारके थे। उसकी सुन्दरता देखने लायक थी। विस्तीर्ण ललाट, भौहें टेढ़ी और नाक तोतेकी तरह थी। उसके वचन और गमन मदोन्दत्त हाथीकी तरह थे। उसकी नाभी सुन्दर और उसके अंग प्रत्यंग सभी सुन्दर थे । वह सदा सन्तुष्ट रहती थी। उसकी आत्मा पवित्र और बुद्धि तीक्ष्ण थी। शुद्ध वंशमें उत्पन्न होनेके कारण वह हाव भाव विलास आदि सभी गुणोंसे सुशोभित थी। वह स्त्रियोंमें प्रधान और पतिव्रता थी। याचकोंके लिए