Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 48
________________ ४४ गौतम चरित्र । वातें सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई, जिस प्रकार बादलोंकी गजना सुनकर मोर प्रसन्न होते हैं। __ मुनिराजने पुनः कहना आरम्भ क्रिया-राजन यह श्रेष्ठ धर्म कल्पवृक्षके तुल्य है। सम्यग्दर्शन इसकी मोटी जड़ और भगवान जिनेन्द्रदेव इसकी मोटी रीढ़ हैं। श्रेष्ठ दान इस धर्म की शाखायें हैं, अहिंसादि व्रत पत्ते और क्षमादिक गुण . इसके कोमल और नवीन पत्ते हैं । इन्द्रादि और चक्रवर्तीकी विभूतियां इसके पुष्प हैं। यह वृक्ष श्रद्धारूपी वादलों की वारिसे सिंचित किया जाता है। और मुनि समुदाय रूपी पक्षीगण इसकी सेवामें संलग्न रहते हैं। अतएव यह धर्म रूपी कल्पवृक्ष तुम्हें मोक्ष सुख प्रदान करें।

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