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गौतम चरित्र । निर्मित करे और उसपर सुन्दर दीप रखे । श्री वर्द्धमान स्वामी के जिनालयमें सुगन्धित जलसे पूर्ण सुवर्णके पांच कलश देने चाहिए । सोनेके पात्रों में रखे हुए पांच तरहके नेवेद्यले उन कमलोंकी पूजा करे । साथ ही भ्रमरों को विमोहित करनेवाला सुगन्धित द्रव्य-चन्दन केसरादि जिनालयमें समर्पित करे । भगवानकी प्रतिमाके लिये सुवर्णका सिंहासन प्रदान करे, जिससे वह अरहंत देवके चरणकमलोंकी कांतिसे सदैव प्रकाशित होता रहे । एक भामंडल भी प्रदान करे। वह सोनेका बना हुआ हो और जिसमें रत्न जड़े हों । जिसकी कांति सूर्य मंडलके प्रकाशको भी क्षीण करदेती हो । भगवानके कथनानुसार शास्त्र लिखाकर समर्पित करे, जिसे श्रवण कर लोग कुवुद्धिसे अंधे
और वधिर न हो जाय । सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्रसे उत्तम पात्रोंको दान देना चाहिए, जिन्हें शत्रु मित्र सव समान दीखते हों । जो देश व्रत धारक हैं, वे मध्यम पात्र कहलाते हैं और जो असंयत सम्यग्दृष्टि है, वे जघन्य है। उन्हें भोजन कराना चाहिए और भोग संपत्ति लाभकी आकांक्षासे दान देना चाहिए । पात्रदान अमृतके तुल्य होता है। मिथ्यादृष्टि, मिथ्याज्ञान और मिथ्यावारित्रको धारण करने वाले, फिर भी हिंसाका जिन्होंने त्याग कर दिया है। वे पात्र हैं एवं जिन्होंने न तो चारित्र धारण किया और न कोई व्रत किया, वे हिंसक मिथ्यादृष्टि जीव अपात्र कहे जाते हैं। अयोग्य क्षेत्र में बोये हुए बीजको तरह इन्हें दिया हुआ दान नष्ट हो जाता है अर्थात् कुभोग भूमिकी उपलब्धि होती है। जिस प्रकार नीम