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गौतम चरित्र । प्रकृतियोंका परिपाक विषके तुल्य होता है और पुण्य प्रकृतियों का अमृतके समान । ज्ञानके विरुद्ध कर्म करनेसे ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मोका बन्ध होता है । जीवोंपर दया करने, दान देने, राग पूर्वक संयम पालन करने नम्रता और क्षमा धारण करनेसे साता वेदनीय कर्मका बंध होता है । दुख, शोक, वध, रोना आदि ये कर्म स्वयं करने या दूसरोंसे करानेसे अजाता.. वेदनीय कर्मका आस्रव होता है। भगवानकी निन्दा, शास्त्रकी निन्दा, तपश्वरणको निन्दा, गुरुकी निन्दा, धर्मकी निन्दा आदिसे दर्शन-मोहनीय कर्मका बन्ध होता है । कषायोंके उदय से तीव्र परिणाम होते हैं और उसके सफल विकल दोनों प्रकार के चरित्र-मोहनीयका वन्ध होता हैं। रौद्रभत्र धारण करनेवाला, पापी, लोभी, शीलवतसे रहित मिथ्यादृष्टि नरकायुका बन्ध करता है। और शील रहित जिनमार्ग का विरोधी पापाचारी जीव तियेच आयुका बंध करता है। परन्तु जो मध्यम गुण धारण करनेवाला, दानी और मन्दकषायी है, वह मनुष्य आयुका बन्ध कर लेता है। देशव्रती महाव्रती अकाम निर्जरा करने वाला सम्यग्दृष्टि जीव देवायुका बन्ध करता है। कुटिल मायाचारी जीव अशुभ नामकर्मका बन्ध करता है और इसके विपरीत मन वचन कायसे शुद्ध जीव शुभ नामकर्मका बन्ध करता है। दुर्गाग्यको प्रकट करनेसे दूसरोंकी निन्दा करनेसे नीच गोत्रका बंध और अपनी निन्दा और दूसरेकी प्रशंसा करनेसे.उच्च गोत्रका बंध होता हैं। जो भगवान अर्हन्तदेवकी . पूजाले विमुख हिंसा आदिमें रत रहता हैं, वह. अंतराय कर्म