Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 88
________________ aaaa.... ८४ • गौतम चरित्र। शानावरण ये पांच भेद ज्ञानावरणके होते हैं। आत्माके दर्शन गुणको रोकने वालेको दर्शनावरण कहते हैं। वह नव प्रकार का होता है-चक्षुर्दर्शनावरण अवक्षुर्दर्शनावरण, अवधि दर्शनावरण, केवल दर्शनावरण निद्रा निद्रानिद्रा प्रचला प्रबलामचला स्त्यान गृद्धि । दुःख और सुखको अनुभव कराने वाले कर्मको वेदनीय कहते हैं । वह दो प्रकारका होता है-साता वेदनीय और असाता वेदनीय । मोहनीय कर्मका स्वरूप मद्य वा धतूरा की तरह होता है । वह आत्माको मोहित कर लेता है। उसके अठाइस भेद होते हैं -अनन्तानुवन्धी, क्रोध मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण, क्रोध, मान,माया,लोभ, प्रत्याख्यानावरण, क्रोध, मान माया, लोभ संचलन क्रोध मान माया लोभ हास्य रति अरति, शोक भय जुगुप्ता स्त्री, पुलिंग नपुन्सक लिङ्ग मिथ्यात्व सम्यमिथ्यात्व सम्यकप्रकृति मिथ्यात्व । जिस प्रकार सांकलमें बंधा हुआ मनुष्य एक स्थान पर स्थिर रहता है, उसी प्रकार इस जीवको मनुष्य नियंच आदिके शरीरमें रोक • कर रखे.उसे आयु कर्म कहते हैं। आयु कर्मके उदयसे ही मनु. प्यादि.भव धारण करना पड़ता है। यह कर्म चार प्रकारका होता है-मनुष्यायु तिर्यंचायु, देवायु और नरकायु । जो • अनेक प्रकारके शरीरकी रचना करे, उसे नाम कर्म कहते हैं। उसके तिरानवे भेद हैं - - ..... .. . देव, मनुष्य, तियंव, नरक ये. चार गतियां एफेन्द्रिय, दो. .इन्द्रिय, ते इन्द्रिय,चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय ये पांव जातियां । औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्यण, पांचबंधन, पंच

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