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गौतम चरित्र। की भी संकोच होने और विस्तृत होनेकी शक्ति है। अतएव वह छोटे-बड़े शरीरमें पहुंच कर शरीरका आकार धारण कर लेता है। शरीर मन वचन और श्वासोच्छ्वासके द्वारा पुद्गल जीवोंका उपकार करता है। जिस प्रकार मत्स्यके तैरनेके लिए जल सहायक होता है तथा पथिकको रोकनेके लिए छाया सहा यक होती है, उसी प्रकार जीवके चलनेमें धर्मद्रव्य सहायक होता है और अधर्म ठहरने में सहायक होता है। द्रव्य परिवर्तन के कारणको काल कहते हैं । वह क्रिया परिणमन, परत्वापरत्व से जाना जाता है। आकाश द्रव्य सव द्रव्योंको अवकाश देता है। द्रव्यका लक्षण सत् है । जो प्रतिक्षण उत्पन्न होता हो, ज्योंका त्यों बना रहता हो, वह सत् है । सर्वज्ञदेवने ऐसा चत. लाया है कि, जिसमें गुण पर्याय हों अथवा उत्पाद, व्यय धौव्य हों, उसे द्रव्य कहते हैं। वचन और शरीरकी क्रिया योग है। वह शुभ अशुभ दो प्रकारका होता है। मन वचन कायकी शुभ क्रिया पुण्य है और अशुभ क्रिया पाप है। मिथ्यात्व, अविरत योग और कषाओंसे आने वाले कर्मको आस्रव कहते हैं। इनमें मिथ्यात्व पांच, अविरत बारह, योग पन्द्रह प्रकारके और कषायके पच्चीस भेद होते हैं । मिथ्यात्वके पांच भेद एकान्त, विपरीत विनय, संशय और अज्ञान हैं। छः प्रकारके जीवोंकी रक्षा न करना, पंचेन्द्रिय तथा मनको वशमें न करना आदि वारहभेद श्री सर्वशदेवने बतलाये हैं। सत्य मनोयोग, असत्य ::मनोयोग, उभय मनोयोग, अनुभय मनोयोग ये चार मनोयोगके सेद हैं । काम योगके सात भेद-क्रमसे औदारिक, औदारिक.