Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 105
________________ पञ्चम अधिकार। १०१ में उत्पन्न हुई उत्तर दिशाकी ओर अच्युत् स्वर्ग तक जाती हैं। सौधर्म स्वर्गमें निवास करनेवाली देवियोंकी उत्कृष्ट भावु पांच पल्य हैं, पर बारहवें स्वर्ग तक दो दो पल्य बढ़ती गयी है। इसके आगे सात पल्यकी वृद्धि होती गयी है। अर्थात सोलहवे स्वर्गकी देवियोंकी आयु पचपन पल्यकी होती है। इससे आगे देवियां नहीं होती । राजन ! संसारमें जो इन्द्र चक्रवर्तीके सुख उपलब्ध होते हैं, उसे पुण्यका प्रभाव समझना चाहिए। इसके विपरीत तिर्यंचोंके दुःखोंको पापका फल । पर राजन ! पाप और पुण्य दोनों ही दुख दायक और बंधके कारण हैं । जो इन दोनोंसे रहित हो जाता है, वही वस्तुतः मोक्ष प्राप्त करता है। अनेक देवों द्वारा नमस्कार किये जाने वाले गौतम स्वामी इस प्रकार धर्मोपदेश देकर चुप हो गये। इसके पश्चात् महाराज श्रेणिक उन्हें नमस्कार कर अपनी राजधानीको लौट आये। ____ महामुनि गौतम गणधर स्वामीने अनेक देशोंका विहार करते हुए स्थान-स्थान पर धर्मकी अभिवृद्धि की । वे आयुके अन्तमें ध्यानके द्वारा चौदह गुणस्थानमें पहुंचे। उस समय वे • कोका नाश करने लगे। उन्होंने उपान्त्य समयमें ही अपने शुक्लध्यानरूपी खड्गसे बहत्तर प्रकृतियोंको नष्ट किया। इन्द्र द्वारा नमस्कार किये जानेवाले गौतम स्वामीने अन्त समयमें साता वेदनीय, आदेप, पर्याप्त, बस वादर, मनुष्यायु, पंचेंन्द्रिय जाति, मनुष्य गति, मनुष्य गत्यानुपूर्वी, उच्च गोत्र सुभग यशस्कीर्ति ये बारह प्रकृतियोंको विनष्ट किया। तीर्थंकर प्रकृति तो

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