Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 104
________________ १०० गौतम चरित्र । I वाइस सागरकी होती है । फिर आगे एक सागर आयुकी वृद्धि होती गयी है। प्रथम और दूसरे स्वर्गके देवोंका अर्वाधज्ञान पहले नरक तक है। तीसरे चौथे स्वर्गके देवोंका दूसरे नरक तक, पांचवें छठें, सातवें भाठवें स्वर्गके देवोंका तीसरे नरक तक है । इसी प्रकार नवें दशवें ग्यारहवें बारहवें स्वर्गके देवोंका अवधिज्ञान चौथे नरक तक तथा तेरहवें चौदहवें पंद्रहवें सोलहवें स्वर्गके देवोंका अवधिज्ञान पांचवें नरक तक है । नवग्रैवेयक देवोंका छठें नरक तक और नौ अनुदिशके देवोंका सातवें नरक तक अवधिज्ञान हैं । पर अनुत्तर वैमानिक देवोंका अवधिज्ञान ऊपर विमान के शिखर तक होता है । पहले दो स्वर्गीके देव, भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषी, मनुष्यों की भांतिही शरीरसे भोग भोगते हैं । किन्तु तीसरे और चौथे स्वर्गके देव, देवियोंके स्पर्श मात्र से ही तृप्त हो जाते हैं । नवे से लेकर बारहवें तकके देव केवल देवियोंके शब्दसे तृप्ति लाभ करते हैं और तेरहवें से सोलहवें तकके देव संकल्प मात्रसे तृप्तिका अनुभव करते हैं । इसी प्रकार सोलहवें स्वर्गसे ऊपरके ग्रैवेयक, अनुदिश, अनुत्तर विमानवासी देवोंमें कामकी वासना नहीं होती । वे ब्रह्मचारी होते है । अतः वे सबसे सुखी रहते हैं । देवियोंके उत्पन्न होनेके उपपाद स्थान सौधर्म और ईशान स्वर्ग हैं | देवियोंके विमानोंकी संख्या पहले में छः लाख और दूसरे में चार लाख अर्थात् दश लाख है । प्रथम स्वर्ग की देवियां दक्षिणमें आरण स्वर्ग तक और ईशान anaAAAAVANA

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