________________
AA
१८४
गौतम चरित्र। हुआ जैनधर्म, सर्वोत्तम पद प्रदान करनेवाला है, रूप, तेज, बुद्धि देनेवाला है तथा सर्वोत्तम विभूतियां-भोगोपमोगकी सामग्रियों तथा स्वर्ग मोक्षादिकी प्राप्ति करनेवाला है, अतएव भव्य जीवोंको चाहिए कि वे जैनधर्मको धारण करें।
समस्त पापोंको नाश करनेवाले श्री नेमिचन्द मेरे इस गच्छ के स्वामी हुए। ये यशकीति अत्यन्त ख्यातनामा हुए। अनेक भव्यजन और राजा उनकी सेवा करते थे। उनके पट्ट पर श्री भानुकीति विराजित हुए। वे सिद्धान्त शास्त्रके पारंगत, कामविजयी प्रबल प्रतापी और शांत थे। उन्होंने क्रोध मान माया लोभ आदि कषायोंपर विजय प्राप्तकी थी। उनके पट्टपर,न्यायाध्यात्म, पुराण, कोष छन्द अलंकार आदि अनेक शास्त्रोंके ज्ञाता श्रीभूषण मुनिराज विराजमान हुए । वे आचार्यों के सम्प्रदायमें प्रधान थे। उनके पपर श्रीधर्मचन्द्र मुनिराज विराजे । वे भारती गच्छके देदीप्यमान सूर्य थे। महाराज रघुनाथके राज्यमें महाराष्ट्र नामका एक छोटासा नगर है। वहां ऋषभ देवका एक जिनालय है, जो पूजा पाठ आदि महोत्सवले सदा सुशोभित रहता है। धर्मात्मा मनुष्य योगिराज सदा उसकी सेवामें लीन रहते हैं। उसी जिनालयमें बैठ कर विक्रम सम्बत १७२६ की ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीयाके दिन–शुक्रके शुभ स्थानमें रहते हुए, अनेक आचार्यों के अधिपति श्रीधर्मचन्द्र मुनिराजने भक्तिके वश हो गौतम स्वामीके शुभ चरित्रकी रचना की। हमारी यही भावना है कि इस चरित्र द्वारा भन्यप्राणियोंका सदा कल्याण होता रहे।
॥ समाप्त।