Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 107
________________ पञ्चम अधिरा। von......... .Unaut h an.... गुणोंका वर्णन कैसे कर सकता हूं । जिनके धर्मोपदेशको श्रवण कर अनेक भव्यजीव मोक्षगामी हुए और आगे भी होते रहेंगे, उन्हें मैं वारवार नमस्कार करता हूं । गौतम स्वामीकी स्तुति कर्मोको नष्ट करने तथा अनन्त सुख प्रदान करनेवाली है। वह मोक्ष प्राप्तिमें सहायक हो। __ गोतम स्वामीका जोब प्रथम विशालाक्षी नाग्नी रानीके पर्यायमें था, पुनः नरकगामी हुआ। वहांसे निकल कर विलाव, शूकर, कुत्ता, मुर्गा और पुनः शुद्र कन्याके रूपमें हुआ। उसने व्रतके प्रभावले ग्रह स्वर्गमें देवत्वकी प्राप्ति की। वहांसे आकर ब्राह्मणका पुत्र गौतम हुआ और उसके. पांचसो शिष्य हुए । सत्य है, धर्मके प्रभावसे क्या नहीं होता है। भगवान महावीर स्वामीके समोशरणमें मानस्तंभको देख कर गौतमका सारा अभिमान चूर होगया। उसने भगवानके समीप जिन-दीक्षा ग्रहण कर ली। अन्तमें वे समस्त परिग्रहों को त्याग कर महावीर स्वामीके प्रथम गणधर हुए। उन्होंने संताप नाशक भव्यजीवोंको सुख प्रदान करने वाली धर्मकी वृष्टिकी अर्थात् धर्मोपदेश दिया। जिन्हें इन्द्र, नरेन्द्र नमस्कार करते हैं, उन्हें मैं हृदयसे नमस्कार करता हूं। जिन्होंने कर्मरूपी शत्रुओंको विनष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया। अपनी दिव्य वाणीके द्वारा जिन्होंने राजाओं और मनुष्योंको धर्मोपदेश दिया, जो चैतन्य अवस्था धारण कर मोक्षगामी हुए, वे श्रीगौतम स्वामी जीवोंके अनूकुल स्थायी मोक्ष-सुख प्रदान करें । जिनेन्द्रदेवकी पाणीसे प्रकट

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