Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 91
________________ AAon पञ्चम अधिकार। ८७ का बंध करता है, उसे इष्ट पदार्थोंकी प्राप्ति नहीं होती। गुप्ति, समिति धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह, जप, और चारित्रसे आश्रव सुनकर महासंवर होता है। यह आत्मा संवर होनेसे अपने लक्ष्य (मोक्ष) पर पहुंच जाता है। बारह प्रकारके तपश्चरण; धर्मरूपी उत्तम बल,और रत्न भयरूपी अग्निसे यह जीव कर्मोंकी निर्जरा करता है। निर्जराके दो भेद हैं - सविपाक अविपाक । तप और ध्वनिके द्वारा विना फल दिये ही जो कर्म नष्ट हो जाते हैं, उसे अविपाक निर्जरा कहते हैं और अबिपाक निर्जरा वह है जो कर्मोंके झड़ जानेसे होती है। समस्त कर्म जब नष्ट हो जाते हैं तब मोक्ष मिलता है । मुक्त होने पर यह जीव ऊपरको गमन करता है । यह धर्मास्तिकाय अर्थात् लोकाकाश के अन्त तक जाता हैं और आगे धर्मास्तिकाय न होनेसे वहीं रुक जाता है। इस प्रकार भगवान गौतम स्वामीकी दिव्यवाणी द्वारा सप्ततत्वोंका स्वरूप सुनकर महाराज श्रेणिक प्रार्थना करने लगे। वे कहने लगे-प्रभो आप संदेह रूपी अन्धकारको दूर करनेके लिए सूर्यके तुल्य हैं। मैं आपके श्रीमुखले काल निर्णय, भोगभूमिका स्वरूप, कुलकरोंकी स्थिति, तीर्थंकरोकी उत्पत्ति, उनके उत्पन्न होनेके मध्यका समय, शरीरकी ऊंचाई चिन्ह, जन्म नगर, उनके माता-पिताओंके नाम, चक्रवर्ती नारायण, प्रतिनारायण, रुद्र, नारद कामदेव, आदि महापुरुषोंके नाम नरक स्वगों में नारकी और देवोंकी स्थिति और उनकी ऊचाई लेश्या आदि बातें सुननेकी आशा रखता हूँ। कृपा कर इन

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