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पन्चम अधिकार ।
६७ पशुओं की तरह गुफाओंमें रह कर जीवन व्यतीत करेंगे । अर्थ, धर्म, काम और मोक्षकी प्रवृत्ति उनमें नहीं रहेगी । वे वनस्पति आदि खाकर जीवन निर्वाह करेंगे। इसके अतिरिक्त वे विवाह संस्कार से भी रहित होंगे। वे अंगसे कुरूप होंगे । जिस तरहसे कृष्ण पक्षमें चन्द्रमाका प्रकाश कमता जाता है और शुक्ल पक्षमें उसकी अभिवृद्धि होती है, उसी प्रकार अवसर्पिणी और उत्सfuणीकालमें मनुष्योंकी आयु शरीर प्रभाव ऐश्वर्य आदिमें घटाबढ़ी होती रहेगी ।
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राजन ! मुनि और श्रावकोंके भेदसे दो प्रकारका धर्म बतलाया गया है; इनमें मुनियोंका धर्म मोक्ष प्राप्त कराने वाला है. और श्रावकोंके धर्मसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है। दोनोंका स्वरूप बतला चुके हैं। अब नरक स्वर्गका हाल चतलाते हैं । जीवको पापकर्मके उदयसे नरकमें जाना पड़ता है। वहां यह जीव नाना तरहके दुःख भोगता है । अधोलोकमें सात नरक हैं। उनके नाम ये हैं - धर्मा, वंशा, मेधा, अंजना, अरिष्टा, मघवी, माघवी इनमें चौरासी लाख विलें क्रमसे हैं। पहली पृथ्वी में तीस लाख दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पंद्रह लाख, चौथीमें दश लाख पांचवीं में तीन लाख, छठीमें पांच कम एक लाख और सातवीं में . पांच | पहलीमें नारकी जीवोंके जघन्य कापोतीलेश्या दूसरी में मध्यम कापोतीलेश्या और तीसरी पृथ्वीके ऊपरी भागमें उत्कृष्ट कापोतीलेश्या है और उसी तीसरीके साधे भागमें जघन्य नील लेश्या चौथीके मध्यम नील लेश्या है । पांचवीं पृथ्वी के उर्द्ध भागमें उत्कृष्ट और उसी पांचवींके निम्न
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