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पंचम अधिकार
---- --- इसके पश्चात् भगवान गौतम स्वामी भव्यजीवोंको आत्म-ज्ञान प्रदान करने वाली सरस्वतीको प्रकट करने लगे। उनकी दिव्यध्वनिमें प्रकट हुआ किं, भगवान जिनेन्द्रदेवने जीव, अजीव, मात्रा, बंध, संवर,निर्जरा और मोक्ष ये सप्ततत्व निरूपित किये हैं। जो अन्तरंग और बहिरंग प्राणोंसे पूर्वभव में जीवित रहेगा, वह जीव है। यह अनादिकालसे स्वयंसिद्ध है । यह जीव भव्य और अभव्य अर्थात् संसारी और सिद्ध भेदसे अथवा सेनी-असेनी भेदसे दो प्रकारका होता हैं। प्रस
और स्थावर भेदसे दो प्रकारका होता है। उनमें पृथ्वीकादिक, जलकादिक, अग्निकादिक, वायुकादिक, वनस्पतिकादिक, ये पंच स्थावरोंके भेद है तथा दो इन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय पंचे. न्द्रिय ये चार बसोंके भेद हैं । स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु, कर्ण ये पंचेन्द्रियां है एवं स्पर्श,रस, गंध वर्ण और शब्द उक्त इन्द्रियों के विषय हैं। शंखावर्त पद्मपत्र और चंशपत्र ये तीन प्रकारकी योनियां होती हैं। शंखावर्त योनिमें गर्भधारणकी शक्ति नहीं होती। पद्मपत्र योनिसे तीर्थंकर चक्रवर्ती नारायण, प्रति नारायण, बलभद्र आदि महापुरुष और साधारण पुरुष उत्पन्न होते है, किन्तु वशपत्रसे साधारण मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं। जीवोंके जन्म तीन प्रकार होते हैं-संमूर्छन गर्भ और उपपाद एवं सचित्त, अचित्त, सचिताचित, शीत, उष्ण, शीतोष्ण