Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 66
________________ गौतम चरित्र। उक्त आठों प्रातिहार्योंसे श्रीवीर.भगवान. सुशोभित होरहे थे। इसके अतिरिक्त अठारह दोषोंसे रहित और चौतीस अतिशयोंसे सुशोभित थे। अर्थात् विश्वकी समग्र विभूतियां उनके साथ विराजमान थीं। इस प्रकार भगवानको आसीन हुए तीन घंटे से अधिक होगये,पर उनकी दिव्यवाणी मौन.रही। भगवानको मौनावस्थामें देखकर सौधर्मके इन्द्रने अवधिज्ञानसे विचार किया, कि यदि गौतमका आगमन हो जाय तो भगवानका दिव्यवाणी उच्चरित हो । गौतमको लानेके विचारसे इन्द्रने एक वृद्धका रूप बना लिया, जिसके अंग २ कांप रहे थे। वह वृद्ध ब्राह्मण नगरकी गौतमशालामें जा पहुंचा। वृद्धके कांपते हुए हाथोंमें एक लकड़ी थी। उसके मुंहमें एक भी दांत नहीं थे, जिससे पूरे अक्षरभी नहीं निकल पाते थे। उस वृद्धने शालामें पहुंच कर आवाज लगाई-ब्राह्मणो ! इस शालामें कौनसा व्यक्ति हैं, जो शास्त्रोंका ज्ञाता हो और मेरे समस्त प्रश्नोंका उत्तरदे सकता हो। इस संसारमें ऐसे कम मनुष्य हैं जो मेरे काव्योंको विचार कर ठीक ठीक उत्तर दे सकें। यदि इस श्लोकका ठीक अर्थ निकल जायगा तो.. मेरा काम बन जायगा, आप धर्मात्मा हैं, अत; मेरे श्लोकका अर्थ बतलादेना आपका कर्तव्य है। इस तरह तो अपना पेट पालनेवालोंकी संख्या संसारमें कम नहीं है, पर परोपकारी जीवोंकी, संख्या थोड़ी है। मेरे गुरु इस समय ध्यानमें लगे हैं और मोक्ष पुरुषार्थको सिद्ध कर रहे है, अन्यथा वे बतला देते। यही कारण है हैं कि आपको कष्ट देनेके लिए उपस्थित हुआ हूं। आपका

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