Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 73
________________ चतुर्थ अधिकार | ξε वृत्तका यथेष्ट पालन करते हैं, वे स्वर्गगामी होते हैं और बिलासिनी देवियां उनकी सेवामें तत्पर रहती हैं। शीलवूतका इतना प्रभाव होता है कि अग्निमें शीलता आजाती हैं, शत्रु मित्र बन जाते हैं तथा सिंह भी मृग वन जाता है । जिस प्रकार लवणके बिना व्यजनका कोई मूल्य नहीं, उसी प्रकार शीलवतके अभाव में समस्त वृत व्यर्थ हो जाते है । इसी शीलवृतका पालन करनेवाले सेठ सुदर्शनकी पूजा अनेक देवोंने मिलकर की थी । परिग्रह पापोंका मूल है। उससे परिणाम कलुषित हो जाते हैं और वह नीति दयाको नष्ट करनेवाला है । संसारके समस्त अनर्थ इसी परिगृह द्वारा सम्पन्न हुआ करते. हैं । यह धर्मरूपी वृक्षको उखाड़ देता है और लोभरूपी समुद्रको बढ़ा देता है। मनरूपी हंसोंको धमकाता है और मर्यादारूपी तटको तोड़ देता है । क्रोध, मान, माया आदि कषाओंको उत्पन्न करनेवाला परिग्रह ही है । वह मार्दव ( कोमलता ) रूपी वायुको उड़ा देनेके लिए वायु सरीखा है और कमलोको नष्ट करने के लिए तुषारके समान है । यह समस्त व्यसनोंका घर, पापोंकीं खानि और शुभध्यानका काल है, इसे कोई भी बुद्धिमान ग्रहण नहीं कर सकता । जैसे आग, लकड़ीसे तृप्त नहीं होती, देव भोगोंसे तृप्त नहीं होते और उनकी आकांक्षा चढ़ती ही जाती हैं; उसी प्रकार मनुष्य अपार धन राशिसे तृप्त जो लोग परिग्रह रहित है, वे ही वस्तुतः सर्वोत्तम हैं । वे पुण्य संचयके साथ धर्मरूपी वृक्ष उत्पन्न करते हैं और वैसे ही वे धर्मात्मा जैनधर्मका प्रसार करते हैं। इस प्रकार मुनिराज

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