Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 79
________________ चतुर्थ अधिकार। कल्याण, पुण्य और ज्ञान विनयकी प्राप्ति करता है। पात्रोंको दान देनेसे रत्नत्रयादि गुणोंमें प्रेम और लक्ष्मीकी सिद्धि होती है। यहां तक कि आत्म-कल्याण और अनुक्रमसे मोक्ष तककी प्राप्ति होती है । दान देनेसे-ज्ञान कीर्ति, सौभाग्य, बल, आयु कांति आदि समस्त गुणोंकी अभिवृद्धि होती है तथा उत्तम संतान और सुन्दरी स्त्रियां प्राप्त होती हैं। जैसे गाय आदि दूध देनेवाले पशुओंको घास खिलानेसे दूध उत्पन्न होता है, उसी प्रकार सुपात्रोंके दानसे चक्रवर्ती, इन्द्र, नागेन्द्र आदिके सुख उपलब्ध होते है । जो दान दयापूर्वक दीन और दुखियोंको दिया जाता है, उसे भी जिनेन्द्र भगवानने प्रशंसनीय कहा है । उससे मनुष्य पर्याय प्राप्त होता है। पर मित्र राजा,भाट,दास ज्योतिषी वैद्य आदिको उनके कार्यके बदले जो दान दिया जाता है, उससे पुण्य नहीं होता। रोगियोंको सदा औषधि दान देना चाहिए । औषधिके दानसे सुवर्ण जैसे सुन्दर शरीरकी प्राप्ति होती है। वे कामदेवसे सुन्दर और सदा निरोग रहते हैं । इसी तरह जो मनुष्य एकेन्द्रिय आदि जीवोंको अभय दान देता है, उसकी सेवाम उत्तम स्त्रियां रत रहती हैं। इस अभयदानके प्रभावसे गहन बनमें, पर्वतों पर किसी भी हिंसक जानवरका भय नहीं रहता । जो जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहा गया हो, धर्मकी शिक्षा देता हो तथा जिसमें अहिंसा आदिका वर्णन हो,यह आर्हत मतमें शास्त्र कहलाता है। जो लोग शास्त्रों को लिखा लिखाकर दान देते हैं, वे शास्त्र पारंगत होते हैं। पर अनेक प्रकारके अनर्थ में रत मनुष्य' शस्त्र, लोहा, सोना,

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