Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 78
________________ ७४ गौतम चरित्र । ही प्रभाव है कि मनुष्य कर्मरूपी शत्रुओंको नष्ट कर तीनों भवों को पार कर जाती है। जिस स्थान पर देव-शास्त्र और गुरुकी निन्दा होती हो, उसे मिथ्यादर्शन कहते हैं, इस दर्शनके प्रभुत्व से मनुष्यको नरकगामी होना पड़ता है। मिथ्यादर्शनसे जीव टेढ़े, कुबड़े, नकटे गूगे तथा बहरे होते हैं। उन्हें दरीद्री, होना पड़ता है और उन्हें स्त्री भी कुरूपा मिलती है। वे दूसरोंके सेवक होते हैं और उनकी अपकीर्ति संसार भर में फैलती है। उन्हें भूत, प्रेत, यक्ष, राक्षस आदि नीच व्यंतर भवों में जाना पड़ता है अथवा वे कौआ विल्ली सूअर आदि नीच और क्रूर होते हैं तथा एकेन्द्रिय वा निगोदमें उत्पन्न होते हैं। किन्तु जो जिनालयका निर्माण कराता है वह संसारमें पूज्य और उत्तम होता है, उसकी कीर्ति संसारमें फलती है। कृषि कुएं से अधिक जल निकालना, रथ गाड़ी बनाना, घर बनाना कुआ बनाना आदि हिंसा प्रधान कार्य नीच मनुष्य ही करते हैं। पर जो प्राणियों की हिंसाके दोषले जिनालय बनाने तथा भगवानकी पूजा आदिमें निषेध करते हैं,वे मूर्ख हैं और मृत्युके पश्चात् निगोदमें निवास करते है। जिस प्रकार विषकी छोटी बूंदसे महासागर दूषित नहीं हो पाता,उसी प्रकार पुण्य कार्यमें दोप नहीं लगता। पर खेती आदि हिंसाके कार्यमें दोष अवश्य लगता है, जैसे घड़े भर दूधको थोड़ी सी कांजी नष्ट कर देती है । उस मनुष्यके समन.पाप नष्ट हो जाते हैं, जो मन वचनकी शुद्धतासे पात्रोंको दान देता है। उसके परिणाम शान्त हो । जाते हैं और आगम तथा चारित्रकी वृद्धि होती है। वह

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