Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 72
________________ ६८ गौतम चरित्र। भी माला बन जाता है। जो लोग असत्य भाषणके द्वारा सद्धर्म प्राप्तिकी आकांक्षा करते हैं, वे विना अंकुर रोपे ही धान्य होने की कल्पना करते हैं। बुद्धिमान लोगों को चाहिए कि वे हिंसा और असत्यके समान चोरीका भी सर्वथा परित्याग कर दें। चोरी पुण्य-लताको नष्ट करनेवाली तथा आपत्तिको वृद्धि करने. बाली होती है । चोरको नरककी प्राति होती है, वहाँ छेदन-ताडन आदि विभिन्न प्रकारके दुख भोगने पड़ते हैं । चोरको सब जगह सजा मिलती है,राजा भी प्राणदण्डकी आज्ञा देता है तथा अनेक प्रकारके कष्ट सहन करने पड़ते हैं । पर जो पुरुष चोरी नहीं करता, उसे जन्म-मृत्युके बन्धनसे मुक्त करनेवाली मोक्ष रूपी स्त्री स्वयं स्वीकार कर लेती है ! चोरीका परित्याग कर देनेसे संसारकी सारी विभूतियां, सुन्दरी स्त्रियां एवं उत्तम गतिकी प्राप्ति होती है। जो लोग चोरी करते हुए सुख की आकांक्षा करते हैं, वे अग्निके द्वारा कमल उत्पन्न करना चाहते हैं । यदि भोजन कर लेनेसे अजीर्णका दूर होना, बिना सूर्यके दिन निकलना और बालू पेरनेसे तेलका निकलना संभव भी हो तो चोरीसे धर्मकी प्राप्ति कभी संभव नहीं हो सकती। शीलवतके पालनसे चारित्रकी सदा वृद्धि होती रहती है, नरक आदिके समस्त मार्ग बन्द हो जाते हैं और ब्रतोंकी रक्षा होती है। यह व्रत मोक्षरूपी स्त्री प्रदान करनेवाला है। जो लोग शीलवतका पालन नहीं करते, वे संसारमें अपना यश नष्ट करते हैं। ब्रह्मचर्यके पालनके अभावमें सारी संपदाये नष्टं हो जाती हैं और अनेक प्रकारकी हिंसायें होती हैं। जो शील

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