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गौतम चरित्र चन्द्रमा तथा बर्फ के समान शुभकीति प्राप्त होती हैं। धर्मके प्रभावसे ही बड़ी विभूतियां और अनेक सुन्दरी स्त्रियां प्राप्त होती हैं और सुरेन्द्र, नगेन्द्र और नागेन्द्रके पद भी सुलभ हो जाते हैं। . . . . . . . . . .",
इसके पश्चात् मुनिदेव मनुष्य आदि समस्त भव्यजीवोंको प्रसन्न करते हुए महाराज श्रेणिकने भगवानसे प्रार्थना की कि, हे भगवन ! हे वीर प्रभो ! उस धर्मको सुननेकी हमारी प्रबल इच्छा है कि जिससे स्वर्ग और मोक्षके सुख सहजसाध्य हैं । आप विस्तार पूर्वक कहिये । उत्तरमें भगवानने दिव्यध्वनि के द्वारा कहा-राजन ! अब मैं मुनि और गृही दोनोंके धारण करने योग्य धर्मका स्वरूप बतलाता हूं। तुझे ध्यान देकर सुनना चाहिए । संसार रूपी भवसमुद्र में डुबते हुए जीवोंको निकाल कर जो उत्तम पदमें धारण करादे, उसे धर्म कहते हैं। धर्मकायही स्वरूप अनादि कालसे जिनेंद्रदेव कहते चले आये हैं। सबसे उत्तम धर्म अहिंसा हैं। इसी धर्मके प्रभावसे जीवोंको चक्रवर्तीके सुख उपलब्ध होते हैं । अतएव समस्त संसारी जीवों पर दयाका भाव रखना चाहिए । दया अपार सुख प्रदान करनेवाली एवं दुख रूपी वृक्षोंको काटनेके लिए कुठारके तुल्य होती है। सप्त व्यसनोंकी अग्निको बुझानेके लिए यह दयां ही मेघ स्वरूप है। यह स्वर्गमें पहुंचाने के लिए सोपान है और मोक्षरूपी संपत्ति प्रदान करनेवाली है । जो लोग धर्मकी साधनाके लिए यज्ञादिमें प्राणियों की हिंसा करते हैं, वे विषैले सपके मुंहसे अमृत झरनेकी आशा रखते हैं । यह संभव है कि जलमें पत्यर