Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 56
________________ ५२ गौतम चरित्र । भी सर्वगुणोंसे सम्पन्न तथा अपने पतिको सदा प्रसन्न रखती थीं। एक दिनकी घटना है । स्थंडिला अपनी कोमल सय्या पर सोयी हुई थी । उसने रातमें पुत्र उत्पन्न होनेवाले शुभ स्वप्न देखे | उसी दिन एक बड़ा देव स्वर्गसे चयकर स्थंडिला के गर्भ में आया । गर्भावस्था के बाद स्थंडिलाका रूप निखर उठा । वह मोतियों से भरी हुई सीप जैसी सुन्दर दीखने लगी । उस ब्राह्मणीका मुख कुछ श्वेत हो गया था, मानो पुत्ररूपी चन्द्रमा समस्त संसारमें प्रकाश फैलानेकी सूचना दे रहा है । शरीरमें किंचित कृशता आ गयी थी । स्तनोंके अग्रभाग श्याम हो गये थे । मानों वे पुत्रके आगमन की सूचना दे रहे हों । उस समय स्थंडिला जिनदेवकी पूजा में तत्पर रहने लगी, जैसे इन्द्राणी सदां भगवानकी पूजामें चित्त लगाती है । स्थंडिला शुद्ध चारित्रं धारण करनेवाले सम्यकूज्ञानी मुनियोंको अनेक पापनाशक शुद्ध आहार देती थी। सूर्यो : दय के समय ! जिस समय शुभग्रह. शुभरूप केन्द्र में थे; उस समय; श्रीऋषभ देवकी रानी यशस्वतीकी तरह, स्थंडिलाने मनोहर अंगोंके धारक पुत्रको उत्पन्न किया । उस काल सारी दिशायें प्रकाशित हो गयीं और चारों ओर सुगन्धित वायु संचरित होने लगी तथा आकाश में जयघोष होने लगे । घरकें समस्त स्त्री-पुरुषों में आनन्द छा · · · + · , गया । चारों ओर मनोहर चाजे बजने लगे । जिस तरह जयंतसे 1 इन्द्र और इन्द्राणीको प्रसन्नता होती है एवं स्वामी कार्तिकेय से महादेव पार्वतीको, उसी प्रकार ब्राह्मण और ब्राह्मणीको

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