Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 63
________________ चतुर्थ अधिकार। ५६ तथा अनेक देव उस समय नृत्य कर रहे थे। मति, श्रुन और अवधिमानोंसे परिपूर्ण भगवानको चालकके योग्य वस्त्राभूपणीसे सुशोभित किया गया तथा पुनः देवोंने अपनी इष्टसिद्धिके लिए स्तुति भारंभ की-जिस प्रकार सूर्यकी प्रभा के बिना कमलोंकी प्रफुल्लता संभव नहीं, उसी प्रकार हे वीर ! आपके वचनके अभावमें प्राणियोंको तत्वज्ञान प्राप्त होना कदापि संभव नहीं । इस प्रकार स्तुति समाप्त होने पर इन्दादिक देवोंने भगवानको पुनः ऐगवत पर आसन किया और आकाश मार्ग द्वारा कुंडपुर आये। उन्होंने भगवानके माता-पिताको यह कहते हुए बालकको समर्पित कर दिया कि आपके पुत्रको मेरु पर्वत पर अभिषेक कराकर लाये हैं।' उन देवोंने दिव्य आभरण और वस्त्रोसे माता-पिताकी पूजाकी। उनका नाम बल निरूपण किया और नृत्य करते हुए अपने स्थानको चल दिये। इसके पश्चात बालक भगवान, इन्द्रकी आज्ञासे आये हुए तथा भगवानकी अवस्था धारण किये हुए देवोंके साथ क्रीड़ा करने लगे। पश्चात वे बाल्यावस्थाको पार । फर यौवनवस्थाको प्राप्त हुए। उनकी कांति सुवर्णके समान तथा शरीरकी उंचाई सात हाथकी थी। उनका शरीर निःस्वे: दता आदि दश अतिशयोंसे सुशोभित था। इस प्रकार भगवान ने कुमारकालके तीस वर्ष व्यतीत किये । इस अवस्थामें भगवान बिना किसी कारण कर्मीको शान्त करनेके उद्देश्यसे विरक्त होगये। उन्हें अपने आप-आत्मज्ञान होगया। तत्काल ही लोकांतिक देवोंका आगमन हुआ। उन्होंने नमस्कार कर कहा

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