Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 46
________________ ४२ गौतम चरित्र। थीं। सत्य है रौद्रध्यानसे जोव नर्कमें जाते हैं; आर्तध्यानले तिर्यव गति होती है और धर्मध्यानके द्वारा मनुष्यकी गति एवं देवगति होती है तथा शुक्ल ध्यानसे केवल ज्ञानके द्वारा उत्कृष्ट मोक्ष प्राप्त होता है। जो लोग शान्ति प्रिय मुनिराज पर क्रोध करते हैं, उन्हें अवश्य नरक मिलता है । और जो उनपर उपसर्ग करते हैं,उनकी तो बात ही क्या । अतएव विद्वान लोगों को चाहिये कि, शास्त्र एवं निथ गुरुकी स्वप्नमें भी निन्दा न करें। कारण इनकी निन्दा करने वालों को नर्ककी प्राप्ति होती है और स्तुति करने वालोंको स्वर्ग की। अतः हे राजन् ! वे तीनों पशु जीवधारी स्त्रियाँ अत्यन्त कष्टसे मरी। ठीक ही है, पाप कर्मोके उदयसे जीवको प्रत्येक भवमें दुःख झेलने पड़ते हैं। मृत्युके पश्चात् उनका जन्म प्रधान धर्म स्थान अवन्ती देशके समीप अत्यन्त नीच लोगोंसे बसे हुए एक कुटुम्बीके घर कन्याओंके रूपमें हुआ। उस कुटुम्बीके लोग मुर्गियां पाला करते थे। इन कन्याओंके गर्भ में आते ही उनके धन-जनका नाश हो गया। घरके सब लोग मर गये। केवल एक पिता बचा था। उन कन्याओंमें एक कानी दूसरी लंगड़ी और तीसरी अत्यन्त कुरूपा काले रंगकी थी। मुनिके घोर उपसर्गके पापसे उनका जीवन अशान्त था । देह सूखी हुई, उनकी आंखें पीले रंगकी, नाक टेढ़ी और पेट बढ़ा हुआ था। दांतोंकी पंक्तियां दूर-दूर, पैर मोटे और शरीर भी आवश्यकतासे अधिक मोटा था। उनके स्तन विषम, हाथ छोटे और होठ लम्बे थे। उनके वाल पीले

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