Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ अथ तीसरा अधिकार वे तीनों कन्यायें संसारसे भयभीत हो उठीं । उन सबों ने बड़ी श्रद्धा और आदरभाव से सुनिराजको नमस्कार किया और उनकी प्रार्थना करने लगीं: मुनिराज ! मुनिके उपसर्गसे ही हमें मातृ-पितृ विहीन होना पड़ा है और हमने भव भव में अनेक कष्ट भोगे हैं। स्वामिन ! आप भवसंसारमें डूबने उतराने वालोंके लिए जहाजके तुल्य हैं। हे संसारी जीवोंके परम सहायक ! पूर्वभव में हमने जो पाप किये हैं, उनके नाश होनेका मार्ग बताइये | जिस वृतरूपी से यह पापरूपी विष नष्ट होता है, उसे आज ही बताइये । उनकी करुणवाणी सुनकर मुनिराजका कोमल हृदय दयार्द्रा हो गया । वे कहने लगे-पुत्रियो ! तुम्हें विधान व्रत धारण करना चाहिए । यह व्रत कर्मरूपी शत्रुओं का विनाशक और संसार सागर से पार उतारने वाला है । इसके पालन करनेसे समस्त भवोंमें उत्पन्न हुए पाप क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। इसके द्वारा इन्द्र चक्रवर्ती की विभूतियां तो क्या मोक्ष तक के अपूर्व सुख प्राप्त होते हैं । मुनिराजकी बातें सुनकर वे कन्याएं कहने लगीं - मुनिराज ! इस व्रतके पालन के लिए कौन-कौन से नियम हैं और प्रारम्भ में किसने इस वृतका पालन किया जिसे [सुनिश्चित फलकी प्राप्ति हुई । प्रत्युत्तर में मुनिराजने कहा- पुत्रियों, इस वृतका

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115