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द्वितीय अधिकार।
४३ रंगके, आवाज काक जैसो और उनका हृदय प्रेमसे शून्य था। उनकी भौहें मिली हुई थीं और वे सदा असत्य भापण करती थीं। क्रोधसे उनका शरीर जलता रहता था। वे विचारहीन और अनेक रोगोंसे पीड़ित थीं। वे नगरके जिस कोनेसे जाती, वहां दुर्गन्ध फैल जाती थी। सत्यही है, पापकर्मोके उदयसे संसार में क्या नहीं होता। उच्छिष्ट भोजनोंसे उनका जीवन निर्वाह होता था, चिथड़ोंसे शरीर ढकती थीं और दुःखसे सदा पीड़ित रहती थीं । कमसे वे तीनों कुरूप कन्याए जवान हुई। उनके पूर्व कर्मों के उदयसे उन्हीं दिनों देशमें दुर्भिक्ष पड़ा। वे तीनों पेटकी ज्वालासे अशान्त होकर व्यभिचार करानेके उद्देश्यसे विदेशको चलीं । मार्गमें भी उनकी लड़ाई जारी थी। उनके साथ न तो खानेका सामान था और न उनमें लजा हया थी। यह पाप कर्मका ही प्रभाव है। जव वह फल देने लगता है तो धन-धान्य रूप, बुद्धि सबके सब नष्ट होजाते हैं। वे कन्यायें अनेक नगरों में भ्रमण करती हुई घटना वशात इस पुष्पपुरमें आगयी हैं । इस वनमें अनेक मुनियोंको देखकर धनकी इच्छाले यहां उपस्थित हुई हैं, फिर भी बड़ी प्रसन्नताके साथ इन सबोंने मुनियों को नमस्कार किया है। राजन! यह संसार अनादि और अनन्त है। जीवका कर्म है, जन्म और मृत्यु प्राप्त करना । इसमें भूमण करते हुए कर्मों के उदयसे उच्च और निकृष्ट भव प्राप्त होते रहते हैं । कुछ दुःख भोगते हैं और कुछ सुख । यहांतक कि पुण्योदयसे स्वर्ग और मोक्ष तकके सुरत्र उपलब्ध होते रहते हैं। वे तीनों कुरूपा कन्यायें अपने पूर्वभवकी,