Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ १० गौतम चरित्र । महाराजने श्री महावीर स्वामीके दर्शनार्थ चलनेके लिए नगरमें भेरी बजवा दी। नगरके सभी भव्यलोग चलनेके लिए प्रस्तुत हुए । श्रोणिक अपनी प्रिया चलनाके साथ हाथी पर सवार हो प्रसन्नता पूर्वक भगवान के दर्शनके लिए चले। सब लोग महावीर स्वामीके शुभ समवशरणमें जा पहुंचे। महाराज श्रोणिकने मोक्षरूपी अनन्त सुख प्रदान करने वाली भगवानकी स्तुति आरम्भ की-हे भगवन् ! आप परम पवित्र हैं, अतएव आपकी जय हो! आप संसार-सागरसे पार करने वाले हैं, अतः आपकी जय हो। आप सबके हितैषी हैं, अतएव आपकी जय हो। आप सुखके समुद्र हैं, अतः आपकी जय हो। हे पर. मेष्ठिन ! आप समस्त संसारी जीवोंके परम मित्र हैं, आप संसाररूपी महासागरसे पार उतारनेके लिए जहाजके तुल्य हैं, अतएव मोक्ष प्रदान कराने वाले भगवान, आपको बारम्बार नमस्कार है। आप गुणोंके भंडार हैं और संसारकी मायासे भयभीत हैं । आप कर्मरूपी शत्रुओंके संहारक हैं और विषयी विषको दूर करने वाले हैं, अतएव आपको नमस्कार है। हे गुणोंके आगार, हे भगवन् ! हे मुनियों में श्रेष्ठ जिनराज! आप कवियोंकी वाणीसे भी परे हैं, आपके सद्गुणोंका वर्णन करना सरस्वतीकी शक्तिके वाहरकी बात है। इस प्रकार भगवानकी स्तुति कर महाराज श्रोणिक गौतम गणधर आदि अन्यान्य मुनियोंको नमस्कार कर मनुष्योंके कोठेमें बैठ गये। थोड़ी देर वाद भगवान महावीर स्वामीने भन्यजीवोंको प्रबुद्ध करनेके लिये मनोहर धर्मोपदेश देना आरम्भ किया

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115