Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ २२ गौतम चरित्र । जलक्रीड़ा कर रहे थे। नगरकी दूसरी ओर खलिहानों में नाजकी : राशियां शोभित हो रही थीं। वे राशियां किसानोंको आनन्द देनेवाली थीं। वहांके खेतों की विशेषता थी कि वे हर प्रकारके पदार्थ उत्पन्न करते रहते थे। सड़क के दोनों किनारों पर सघन पेडोंकी सुन्दर पंक्तियां लगी हुई थीं, जिनकी सुशीतल छाया में श्रान्त पथिक लोग विश्राम किया करते थे । उन वृक्षोंकी डालियां फलोंके भारसे नत हो रही थीं । नगरके चारों और सुन्दर और विशाल उद्यान थे, जहांकी लताएं पुष्प और फलोंसे सुशोभित थीं । वे लताएँ मनोहर सरस एवं विलासिनी स्त्रियोंके समान शोभित थीं । उस नगरकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि, वहां कोई रोगी नहीं था । यदि सरोग था तो राजहंस ही। वहां ताड़नका तो नाम नहीं था । हां कपासका ताड़न होता था और उससे रुई निकाली जाती थी। वहां किसीके पतनकी भी संभावना नहीं थी । यदि पतन था तो वृक्षोंके पत्तोंका; क्योंकि वही ऊपर से नीचे गिरते थे । बन्धन भी केशपाशोंका ही होता था । वे ही बड़ी सतर्कतासे बांधे जाते थे। वहां दण्ड, ध्वजाओंमें ही था और किसीको दण्ड नहीं दिया जाता था । भंग भी कवियों के रचे हुए छन्दों तक ही सीमित था और किसीका भंग नहीं होता था | हरण स्त्रियोंके हृदयमें ही था और किसीका हरण नहीं किया जाता था । स्त्रियां ही पुरुषोंके हृदयका हरण कर लेती थीं। वहां भय भी नवोढ़ा स्त्रियोंको ही होता और कोई कभी भयभीत नहीं होता था इस नगर के राजाका नाम .

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115