________________
द्वितीय अधिकार |
३७
पहुंची और क्रोधित हो भाँति भांतिके उपद्रव करने लगीं । एकने रोना प्रारम्भ किया और दूसरी उनसे लिपटगयी | इसके अतिरिक्त तीसरी धुआंकर मुनिराजको अनेक कष्ट देने लगी । सत्य है कामसे पीड़ित व्यक्ति जितना अनर्थ करे वह थोड़ा है ।
किन्तु इतने उपद्रव होते हुए भी मुनिका स्थिरमन चलायमान नहीं हुआ। क्या प्रलय वायुके चलते पर सहान मेरु पत्रर्त कभी चलायमान होता है ? इसके बाद वे दुष्ट स्त्रियां नंगी होकर मुनिके समक्ष नृत्य करने लगीं । वे काम से संतप्त स्त्रियां मुनिसे कहने लगीं- स्वतंत्र विचरण करने वालोंके लिए परलोकमें भी स्वतंत्रता प्राप्त होती है और इहलोक में भोग में लिप्त रहनेसे भोगों की सदैव प्राप्ति होती रहती है। किन्तु नग्न रहनेसे उसे नंगापन ही उपलब्ध होता है । अतएव तुम्हें चाहिए कि, हमारी इच्छाओंकी पूर्ति करो। इस भोगकी लालसा चक्रवर्ती, देवेन्द्र और नागेन्द्रों तकने की है । संसारका सारा सुख स्त्रियोंकी प्राप्तिमें होता है । कारण वे इन्द्रियजन्य सुख प्रदान करने वाली होती हैं । इसलिए जो व्यक्ति स्त्री-सुख से वंचित है, उसका जन्म व्यर्थ है । सत्य मानों, यदि तूने हमारी इच्छा की पूर्ति नहीं की तो तेरा यह शरीर चण्डीके समक्ष रख दिया जायगा । इस प्रकार कुवाक्य कहती हुई उन स्त्रियोंने विकार रहित मुनिवरके शरीरको उठाकर चण्डीके समक्ष रख दिया। इसके पश्चात् उन सर्वोने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किये । पत्थर, लकड़ी मुक्का, लात, जूते आदिसे उनकी ताड़नाकी और अन्तमें बांध दिया । उस समय मुनिराजने