Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 40
________________ गौतम चरित्र। वतार और संसारी जीवोंपर दद्याकी दृष्टि रखनेवाले थे । मुनिराज कठिन दोपहरीमें भी योग धारण किया करते थे। वे चोर और लम्पटों के पाप रूपी वृक्षको काट डालनेके लिए कुठारके समान तीक्ष्ण थे। उन्होंने समस्त परिग्रहों का सर्वथा परित्याग कर दिया था। उस समय वे इर्या पथकी बुद्धिले गमन कर रहे थे। उन्हें देखकर वे तीनों स्त्रियों क्रोधसे लाल होगयीं । उन्होंने मुनिको संबोधित करते हुए कहा-अरे नंगे फिरनेवाले ! तू मानमोहादि शुभकर्मों ! से सर्वथा रहित हैं। न जाने हमारे किस पाप कर्मके उदय होनेसे तेरा साक्षात् हुआ । इस समय हम उज्जैनीके महाराजाके यहां धन मांगने के उद्देश्यले जा रही थीं। वह राजा अत्यन्त धर्मात्मा और शत्रुओंको परा. स्त करनेवाला है। तूने अपना नग्नरूप दिखलाकर अपशकुन कर दिया । तू सर्वथा बुरा है और जो तेरा दर्शन वा स्तुति करता है वह भी बुरा है अर्थात् पापी है । इसलिये हमारे कार्यों की सिद्धि होना संभव नहीं । इस समय तो अभी दिन बाकी है और सभी वस्तुएं अच्छी तरहसे दिखलाई पड़ती हैं किन्तु रात्रि होनेपर हम लोग मार्ग में अपशकुन करनेका फल तुझे चखावेंगी। फिर भी उन स्त्रियोंके कठोर वचनों से मुनिराजको जरा भी क्रोध नहीं हुआ, कारण वे दयालु स्वभावके थे । मुनिराजने इस घटनापर दष्टिपात न कर बनमें जाकर योग धारण कर लिया । वस्तुत: जलमें अग्निका वश नहीं चल सकता, ठोक उसी प्रकार योगियोंके पवित्र हृदयको क्रोधरूपी अग्नि नहीं जला सकती। रात्रि होनेपर वे तीनों नीव स्त्रियां मुनिके समीप

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