Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 37
________________ ammananmmmaraww.www.w..rn द्वितीय अधिकार। ................ .. more.. ....... .... विचार करने लगा। किसो अभिप्राय, बक्रदृष्टि, बुरी संगति तथा एकान की बात चीतले स्त्रियां नष्ट होजाती हैं। राजाने सोवा-मैं तो किसी समय भी रानीको अप्रसन्न नहीं किया। उसे पटरानी के पदपर बिठाया तथा समस्त रनवाल में वह पूज्य समझी जाती थी। फिर उसके नष्ट होनेका कोई कारण नहीं दीखता। जिस स्त्रीके सद्गुणी और प्रजापालन में तत्पर १० वर्षका पुत्र हो, वह सुन्दरी उसे त्याग कर कैसे चली गयी, यह समझमें नहीं आता। अवश्य ही वह अपनी नीच दासियों को संगतिमें पड़कर भ्रष्ट हुई है। जब खेतका मेडही उस खेतको खाने लगे,तब भला उस खेतकी रक्षाही कैसे की जा सकती हैं। यह निश्चित हैं कि कुसंगति में पड़कर सजन भी नष्ट हुए बिना नहीं रह सकते। इस भांति अनेक मानसिक चिन्ताओं से दुखी होकर राजाने राज्य कार्य का साग प्रवन्ध त्याग दिया । उसे राज्य-शासन से एक प्रकारकी विरक्ति सी होगयी। राजाकी इस चिन्तासे अन्य सामन्त राजा और प्रजा भी दुखी थी। अनेक राजाओंने समझाया भी पर क्षणभरके लिए भी राजाका शोक कम नहीं हुआ। बात यह थी कि रानी उसके मनको हर ले गयी थी। राजाका वियोग दुःख इतना बढ़ गया कि अन्तमें उसने उसका प्राण लेकर ही छोड़ा। यह ठीक ही है , क्योंकि कौन ऐसा पुरुष है जिसे स्त्रीके वियोगमें मरना नहीं पड़ता हो । राजाकी मृत्यु हो जानेके पश्चात उस ऐश्वर्यशाली राज्य शासनका भार उसके पुत्रको सौंपा गया। समस्त मंत्रियों

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