Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 36
________________ aaaaaaaaaamanand ananane.nrnwww . गौतम चरित्र। समझ गया कि यह कृत्रिम रानी है, वस्तुत: महलमें रानी नहीं है। रतिके समान सुन्दरी विशालाक्षीका किसी अंपर पापीने हरण कर लिया। राजाकी आतुरता और बढ़ गयी। वह मूर्छित होकर भूमिपर गिर पड़ा। तत्काल ही सेवकोंने शीतोपचार किया, जिससे राजाकी मूर्छा दूर हुई। राजाका हृदय प्रिय रानीके वियोगमें व्याकुल हो रहा था। वह बच्चोंकी तरह विलाप करने लगा। वह कहने लगा-हंस जैसी चाल चलनेवाली, मृगनैनी तू शीघ्रता पूर्वक बतला कहां है ! हे गुणों का गौरव बढ़ानेवाली, मेरे हृदयरूपी धनको अपहरण करने. वाली, हे विलासिनी तू कहाँ चली गई। हे चन्द्र-बदनी सुन्दरी ! तेरी सेवा करनेवाली दासियां कहां गयीं। साथ ही मेरे प्रति तेरा प्रेम कहां चला गया। संसार के माया मोह मुझे सुन्दर नहीं जान पड़ते। मेरी समझमें नहीं आता कि, जब इस महलमें कोई नहीं आसकता तो किस प्रकार तू अपहरित की गयी अथवा तू अपने आपही कहीं चली गयी। क्या तू उस प्रकारसे तो नष्ट नहीं हुई, जिस प्रकार बुरी संगतिमें पड़कर सज्जन पुरुष भी नष्ट होजाते हैं। स्त्रियां अन्य पुरुषको अपने यहां बुलाती हैं और किसी अन्यसे प्रेम करती हैं एवं नियत समय किसी अन्य को बतला कर अन्यके साथ क्रीड़ा करती हैं। ये सब काम एक साथही सम्पन्न होते हैं । जैसा उनका बाहरी स्वरूप होता हैं वैसा भीतरी नहीं होता। इसलिए स्त्रियों के चरित्रका भला कौन वर्णन कर सकता है। शोकसे सन्तप्त राजा का हृदय व्याकुल होकर

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