Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 34
________________ गौतम चरित्र । उत्तम हैं। वस्तुतः मानवजन्म सार्थक करनेके लिये इससे बढ़ कर और दूसरा मार्ग नहीं है। इसके पश्चात् काम-वाणसे दग्ध अत्यन्त विह्नल, विलासकी कामना करने वाली, अपने कुलाचार से रहित वह रानी पूर्वाजित पापोंके उदयसे दासियोंको लेकर घरसे बाहर निकलनेका प्रयत्न करने लगी। वस्तुतः असत्य भापण करना, दुर्बुद्धि होना कुटिल होना, और कपटाचार करना ये स्त्रियोंके स्वाभाविक दोष होते हैं। इन्हीं कारणोंसे उसने रूई भरकर एक स्त्रीका पुतला बनाया और उसे वस्त्राभूपणोंसे खूब सजाया । रानीने उस पुतलेकी कमरमें करधनी, पैरों में नूपुर, सरमें तिलक लगाये तथा उसे चन्दनसे लिप्त कर फूलोंसे खूब सजाया। उसके स्तनोंपर कंचुकी, मुखपर पत्तन तथा मोतियोंकी नथ पहना दी ! रानी एक बार उस बने हुए पुतलेको देखकर बड़ी प्रसन्न हुई । वह ठीक रानीकी आकृतिका ही बन गया था। पश्चात् रानीने उस पुतलेको चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्योंसे लिप्त और मोती आदि अनेक रत्नोंसे सुशोमितकर पलङ्गपर सुला दिया। उसने द्वारपाल आदि सब सेवकोंको धन देकर अपने वशमेंकरलिया था। उसके पूर्वभवके पापोंके उदयसेही उसकी ऐसी विचित्र बुद्धि होगयो । वह किसी देवीकी पूजाके वहाने अपनी दो दासियोंको साथ लेकर घरसे बाहर निकली। उन तीनोंने अपने वस्त्राभूषण आदि राज्य चिन्होंका सर्वथा परित्याग कर दिया एवं गेरुभा वस्त्र पहनकर योगिनी वेशमें हो गयीं। वे राजमहलसे चलकर सीधे वनमें पहुंची। उनका राजभवन में मिलनेवाला सुन्दर भोजन तो छूट ही गया

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