Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 31
________________ २७ द्वितीय अधिकार। धी, मानों अपने अतिथि महाराजका स्वागत कर रही हो। प्रथम ही गजाने भामके वृक्ष पर बैठे हुए दो स्त्री-पुरुष पिकाको देखा । चे परस्पर प्रेम-चुम्बन कर रहे थे। जिल स्त्रो फा सम्भोग सुख प्रदान करने वाला पति विदेश चला गया हो, वह भला बसंतके इस मधुमय समयमें पिककी वाणी कैसे सहन कर सकती है । राजा बनके चारों ओर घूम-घूम कर पक्षियों के मनोहर फालरत्र सुगने लगे। कड़ी मालतीके सुगन्धित पुष्प देण्ये, काहीं पुष्प वृक्षों पर भूमरीका समूह कीड़ा करते हुए दियाई दिया। इसी प्रकार फिन्दी स्थानों पर मत्त मयूर नृत्य फरते थे। स्थान-धान पर बन्दगंकी बिलासपीड़ा हरिणांकी लीला और पक्षियोंके समुदाय देखे । राजाने भामके वृक्ष, अनारके बन और. काही विजार के फल देखे । स्त्री पुरुषोंकी फोड़ा भी देखने लायक थी। कहीं कोई अपनी प्रिया को मना रहा है। कहीं स्त्री मान द्वारा पतिको चिढ़ा रही है। कोई प्रेम में मत्त थी और कोई स्तन दिखाकर प्रेम प्रकट कर रही थी। फिन्ही स्थलों पर हरी घास थी, काहीं पृथ्वी जलसे भर रही धी और कहीं पर धानके वृक्ष फलोसे झक रहे थे। इन सारी शोगाको राजाने बड़े नायसे देखा । पश्चात् यह अंगूरकी लताओंके मंडपमें पहुंचे और वहीं पंचेन्द्रियोंकी तृप्ति करने घाले सरस कामोपभोग एवं लीला पूर्वक ऐहिक स्पर्शसे रानी को प्रसन्न करने लगे। इस प्रकार राजा कामोपभोगसे प्रसन्न होकर रानीके साथ जल क्रीड़ाके लिए गये। जल क्रीड़ा करते समय सरोवरकी छटा देखने लायक थी। शरीरकी फेसर धुल.

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