Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 29
________________ द्वितीय अधिकार महादेवकी सेवा करने में लग गया था। रानीकी नाक इतनी सुन्दर थी कि तोतेकी चोचोंकी सारी सुन्दरता जाती रही । तोते विवारे लज्जासे अवनत हो वनमें जा पहुंचे थे। वह अपनी सुमधुर वाणीसे पिककी वाणी भी जीत चुकी थी। संभवत यही कारण है कि कोयलोंने श्यामवर्ण धारण कर लिया है। उसके विशाल नेत्र हरिणीके नेत्रोंको भी मात करते थे। यही कारण है कि हरिणियोंने अपना बसेरा वनमें कर लिया है। रानीके दोनों कान मनोहर और कर्ण-भूषणोंसे शोभित हो रहें थे। उसकी भौहें कमान जैसी टेढ़ी और चंचल थीं, मानों वे कामरूपी योद्धाओंको परास्त करनेके लिए धनुषवाण ही हों। रानीकी सुगन्धित पुष्पोंसे गठी हुई केशराशि ऐसी सुन्दर जान पड़ती थी कि उसकी सुगंधिके लोभ से सर्प ही आगये हों । वह अपने कटाक्ष और हावभावसे सुशोभित थी। अर्थात् समस्त गुणोंसे भरपूर थी । उसके गुणोंका वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं हैं। वह बड़ी रूपवती और पतिको स्ववशमें करनेके लिए औषधिके तुल्य थी। ऐसी परम सुन्दरीके साथ सुख उपभोग करता हुआ राजा जीवनयापन कर रहा था। जिस प्रकार कामदेव रतिके वशमें रहता है, ठीक उसी प्रकार उस गनीने अपने पतिको प्रेमपाशमें बांध लियाथा । राजा विश्वलोचनको उस विशालाक्षीके स्पर्श,रूप,रस, गंध और शब्दसे जो ऐहिक सुख उपलब्ध थे, उसे वही अनुभव कर सकता है, जिसे ऐसी सुन्दरी पत्नी मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हो ।' कुछ समय व्यतीत होनेपर ऋतुराज बसंतका आगमन हुआ।

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