________________
गौतम चरित्र। है कि धर्मके प्रभावसे मानव जातिको शुद्ध रत्नत्रयकी प्राप्ति होती है । रत्नत्रयके प्राप्त होनेके बाद मुक्तिकी प्राप्ति हो जाती है। यह धर्मरूपी कल्पवृक्ष इच्छाके अनुसार फल देने वाला, हर्ष उत्पन्न करने वाला एवं सौभाग्यशाली बनाने वाला है। इससे कान्ति, यश सभी प्राप्त होते हैं। अपने पुण्यके प्रभावसे भरत क्षेत्रके छः खण्डोंकी भूमि, नवनिधि, चौदह रत्न और अनेक राजाओंसे सुशोभित चक्रवर्तीकी विभूति प्राप्त होती है। उसी पुण्यकी महिमासे मनुष्य देवांगनाओंके समान रूपवती और अनेक गुणोंसे सुशोभित ऐसी अनेक स्त्रियोंका उपभोग करते हैं। यही नहीं विद्वान, वीर और शौभाग्यशाली पुत्र भी पुण्यके प्रभावसे ही प्राप्त होते हैं । वड़े बड़े राजा महा. राजा तथा धनवान लोग-जो सोनेके पात्र में भोजन करते हैं, वह भी पुण्यके प्रभावके बिना नहीं प्राप्त होता । राजन् ! शरीर का स्वस्थ रहना, उत्तम कुलमें जन्म ग्रहण करना, बड़ी आयु को प्राप्त करना तथा सुन्दर रूपका मिलना ये सव पुण्यके प्रभाव हैं। इसे धर्मका ही फल समझना चाहिये। यह भी स्मरण रहे कि देव, शास्त्र और गुरुकी निन्दासे पाप उत्पन्न होता है तथा सम्यग्दर्शन व्रत आदि नियमोंको भंग करनेसे महान पापका भागी बनना पड़ता है। सातों व्यसनोंके सेवनसे भी भारी पाप लगता है। पंचेन्द्रियों के विषयोंके सेवनसे भी पाप लगता है। क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायोंके संयोगसे अन्य जीवोंको पीड़ा पहुंचानेसे और निन्ध आचरणोंके व्यवहारसे पाप उत्पन्न होता है। पर स्त्री